तर्क-ए-ताल्लुक निभाएगा कब तक
वो मुझे आज़माएगा कब तक
हद कोई होगी बे-नियाज़ी की
हमसे दामन बचाएगा कब तक
उम्र दहलीज़ पे शमाँ कर दी
वो भी देखें ना आएगा कब तक
ये तश्ना-लब, ये भूख-लाचारी
खुदा ये दिन दिखाएगा कब तक
तीरगी जुगनूओं के बस की नही
जाने सूरज वो लाएगा कब तक
दिल गया होश गया साँसें भी
ये इंतेज़ार जाएगा कब तक
एक तेरी मोहब्बत ने बनाया हैं खुदा मुझको,मैं रोज खल्क करता हूँ नया संसार ग़ज़ल में..
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Thursday, July 7, 2011
Tuesday, April 26, 2011
बारिश ...
कर गई आज दिल-ओ-जाँ को मेरे तर बारिश ,
हुई थी ख्वाब की तेरे जो रात भर बारिश ..
वो रात भर मेरे कानों में घोलती मिसरी
ले के आई थी मुझ तक तेरी खबर बारिश ...
यूँ ही एक दुसरे में घुलते रहे हम दोनों ...
फकत बूँदें थीं वो, या तेरी नजर , बारिश ...
नजर में घुल के मेरी रूह तक उतर जाना
सीख के आई है तुझसे ही ये हुनर बारिश ...
दिल की डाली को उम्र भर ये हरा रखेगी ...
जो तेरे दीद की हुई है, मुक्तसर बारिश ...
*शफक का वक़्त है, रवि के साथ है पूनम*
मोहब्बत बरस रही है, तू ठहर बारिश !
*शफ़क -- गोधुलि बेला की लालिमा… जब सूरज और चाँद दोनों ही दिख जाते हैं !
हुई थी ख्वाब की तेरे जो रात भर बारिश ..
वो रात भर मेरे कानों में घोलती मिसरी
ले के आई थी मुझ तक तेरी खबर बारिश ...
यूँ ही एक दुसरे में घुलते रहे हम दोनों ...
फकत बूँदें थीं वो, या तेरी नजर , बारिश ...
नजर में घुल के मेरी रूह तक उतर जाना
सीख के आई है तुझसे ही ये हुनर बारिश ...
दिल की डाली को उम्र भर ये हरा रखेगी ...
जो तेरे दीद की हुई है, मुक्तसर बारिश ...
*शफक का वक़्त है, रवि के साथ है पूनम*
मोहब्बत बरस रही है, तू ठहर बारिश !
*शफ़क -- गोधुलि बेला की लालिमा… जब सूरज और चाँद दोनों ही दिख जाते हैं !
Friday, March 25, 2011
हर रिश्ते में फनकारी है ...
बस चेहरों की अय्यारी है
हर रिश्ते में फनकारी है
बाज़ार सजा है निस्बत का
और बिकने की तैयारी है
सूरज का भरोसा देता है
सब जुगनू की मक्कारी है
है फूट के रोया सारी शब
जी चाँद का अब तक भारी है
मेरे दिल की चुगली करते हैं
इन लफ्जों में गद्दारी है
एक मुद्दत बाद चखा उनको
मेरी ग़ज़लों की इफ्तारी है .
हर रिश्ते में फनकारी है
बाज़ार सजा है निस्बत का
और बिकने की तैयारी है
सूरज का भरोसा देता है
सब जुगनू की मक्कारी है
है फूट के रोया सारी शब
जी चाँद का अब तक भारी है
मेरे दिल की चुगली करते हैं
इन लफ्जों में गद्दारी है
एक मुद्दत बाद चखा उनको
मेरी ग़ज़लों की इफ्तारी है .
Sunday, January 16, 2011
अपने अपने मायने …
कितनी बातों के लगे हैं, जाने कितने मायने
जितने सर हैं,उतनी सोचें,सबके उतने मायने॥
हमने तो बातें कही थीं,इक फकत मकसद के साथ
अपने मकसद से जा निकले, अपने अपने मायने ॥
अपने अपने आइनों में सब दिखें हैं पाक साफ़ ..
अपनी ही करतूत हैं, ये सारे फितने मायने ॥
हमने मसलों पर सुना था एक चुप्पी का इलाज़
पर लफ़्ज़ों के उतने न थे,चुप के जितने मायने ॥
अपने ख़्वाबों में कबूतर,और उनके ख्वाब, बाज़
देखना है रखते हैं अब किसके सपने मायने !!
जितने सर हैं,उतनी सोचें,सबके उतने मायने॥
हमने तो बातें कही थीं,इक फकत मकसद के साथ
अपने मकसद से जा निकले, अपने अपने मायने ॥
अपने अपने आइनों में सब दिखें हैं पाक साफ़ ..
अपनी ही करतूत हैं, ये सारे फितने मायने ॥
हमने मसलों पर सुना था एक चुप्पी का इलाज़
पर लफ़्ज़ों के उतने न थे,चुप के जितने मायने ॥
अपने ख़्वाबों में कबूतर,और उनके ख्वाब, बाज़
देखना है रखते हैं अब किसके सपने मायने !!
Tuesday, December 14, 2010
ज़िन्दगी क्या है ...
खबर नहीं की खुदी क्या है बेखुदी क्या है *...
सख्त हैरत में हूँ अब और आशिकी क्या है
चमक रही जो जेहन में वो रौशनी क्या है
ये मुझ में आज फिर मुझसे अजनबी क्या है
तमाम लफ़्ज़ों में है दाद शोखियों के तेरे
तेरा जमाल है बस और शायरी क्या है
लज्ज़त-ए-प्यास का तू एहतराम कर तिशनाह
सुबू के सामने टूटे वो तिश्नगी क्या है
उसके पहलु में पड़ा जिस्म मेरा बे-जुम्बिश
गोया ये मौत है तो कह दो ज़िन्दगी क्या है
वही सजदों का सबब है, वही परस्तिश है
मेरे खुदा जो वो नहीं तो बंदगी क्या है .
* गज़ल का पहला मिसरा "मिसरा-ए-तरह" है जिस पर ये तरही गज़ल कही है मैने।
जमाल*- beauty, loveliness; एहतराम*-respect;
तिशनाह*-thirsty;सुबू*- pot that contains water (jug),
तिश्नगी*-thirst, pyaas।
सख्त हैरत में हूँ अब और आशिकी क्या है
चमक रही जो जेहन में वो रौशनी क्या है
ये मुझ में आज फिर मुझसे अजनबी क्या है
तमाम लफ़्ज़ों में है दाद शोखियों के तेरे
तेरा जमाल है बस और शायरी क्या है
लज्ज़त-ए-प्यास का तू एहतराम कर तिशनाह
सुबू के सामने टूटे वो तिश्नगी क्या है
उसके पहलु में पड़ा जिस्म मेरा बे-जुम्बिश
गोया ये मौत है तो कह दो ज़िन्दगी क्या है
वही सजदों का सबब है, वही परस्तिश है
मेरे खुदा जो वो नहीं तो बंदगी क्या है .
* गज़ल का पहला मिसरा "मिसरा-ए-तरह" है जिस पर ये तरही गज़ल कही है मैने।
जमाल*- beauty, loveliness; एहतराम*-respect;
तिशनाह*-thirsty;सुबू*- pot that contains water (jug),
तिश्नगी*-thirst, pyaas।
Thursday, December 9, 2010
तू छोड़ दे जन्नत मेरे ख़ुदा...
हम काफिरों को बक्श दे रहमत मेरे ख़ुदा !
आ दिल में बस,तू छोड़ दे जन्नत मेरे ख़ुदा !
हर लम्हा सुर्ख है यहाँ इन्सां के खून से
क्यों सिरफिरों को बख्श दी ताक़त मेरे ख़ुदा
है क्या बिसात गाँधी-ओ-नानक-ओ-बुद्ध की
अब हो गए ये माजी की जीनत मेरे ख़ुदा
जो जिस्म से शफ्फाक हैं पर दिल से कोयले
कैसे करूँ मैं उनकी अब इज्ज़त मेरे ख़ुदा !
काफिर ही कहो मुझको,पर इन्सां तो बचा हूँ
फिरती नहीं हर रोज़ ये नीयत मेरे ख़ुदा !
आ,फिर रहीम-ओ-राम बनके इस जहान में
लुटती तेरे जहान की अस्मत मेरे ख़ुदा !
आ दिल में बस,तू छोड़ दे जन्नत मेरे ख़ुदा !
हर लम्हा सुर्ख है यहाँ इन्सां के खून से
क्यों सिरफिरों को बख्श दी ताक़त मेरे ख़ुदा
है क्या बिसात गाँधी-ओ-नानक-ओ-बुद्ध की
अब हो गए ये माजी की जीनत मेरे ख़ुदा
जो जिस्म से शफ्फाक हैं पर दिल से कोयले
कैसे करूँ मैं उनकी अब इज्ज़त मेरे ख़ुदा !
काफिर ही कहो मुझको,पर इन्सां तो बचा हूँ
फिरती नहीं हर रोज़ ये नीयत मेरे ख़ुदा !
आ,फिर रहीम-ओ-राम बनके इस जहान में
लुटती तेरे जहान की अस्मत मेरे ख़ुदा !
Wednesday, December 1, 2010
मेरी तहरीर में तुझसा शरर नहीं आया
बिछड़ गया तो कभी लौट कर नहीं आया
सफ़र में उसके कहीं अपना घर नहीं आया
होके मायूस सपर जा गिरा शिकंजे में
बिना कफस उसे दाना नज़र नहीं आया
वो एहतराम से करते हैं खूँ भरोसे का
हमें अब तक भी मगर ये हुनर नहीं आया
मेरे वादे का जुनूँ देख, तुझसे बिछड़ा तो
कभी ख़्वाबों में भी तेरा ज़िकर नहीं आया
लगा दे आग हर महफ़िल में नमूं होते ही
मेरी तहरीर में तुझसा शरर नहीं आया
दुश्मनी हमने भी की है मगर सलीके से
हमारे लहजे में तुमसा ज़हर नहीं आया
है "रवि" मील का पत्थर कि जिसके हिस्से में
अपनी मंजिल ,कभी अपना सफ़र नहीं आया
सफ़र में उसके कहीं अपना घर नहीं आया
होके मायूस सपर जा गिरा शिकंजे में
बिना कफस उसे दाना नज़र नहीं आया
वो एहतराम से करते हैं खूँ भरोसे का
हमें अब तक भी मगर ये हुनर नहीं आया
मेरे वादे का जुनूँ देख, तुझसे बिछड़ा तो
कभी ख़्वाबों में भी तेरा ज़िकर नहीं आया
लगा दे आग हर महफ़िल में नमूं होते ही
मेरी तहरीर में तुझसा शरर नहीं आया
दुश्मनी हमने भी की है मगर सलीके से
हमारे लहजे में तुमसा ज़हर नहीं आया
है "रवि" मील का पत्थर कि जिसके हिस्से में
अपनी मंजिल ,कभी अपना सफ़र नहीं आया
Saturday, October 30, 2010
हर माह नया घोटाला कर
यूँ खुशफहमी न पाला कर
कोई सच नंगा न उछाला कर
ईमान न जीने देगा तुझे
दुनिया में गड़बड़ झाला कर
बस अपना धंधा चमका तू
जनहित के काम को टाला कर
तनख्वाह रखे भूखा सबको
हर माह नया घोटाला कर
हुई ख़त्म गुलामी गोरों की
जो भी धंधा कर काला कर
इक झूठा चेहरा गढ़ हर पल
सच के सांचे में ढाला कर
निज-स्वार्थायन नित बांचा कर
हाथन नोटों की माला कर
जयचंद पाल ले घर में और
हर भगत को देश निकाला कर
कोई सच नंगा न उछाला कर
ईमान न जीने देगा तुझे
दुनिया में गड़बड़ झाला कर
बस अपना धंधा चमका तू
जनहित के काम को टाला कर
तनख्वाह रखे भूखा सबको
हर माह नया घोटाला कर
हुई ख़त्म गुलामी गोरों की
जो भी धंधा कर काला कर
इक झूठा चेहरा गढ़ हर पल
सच के सांचे में ढाला कर
निज-स्वार्थायन नित बांचा कर
हाथन नोटों की माला कर
जयचंद पाल ले घर में और
हर भगत को देश निकाला कर
Friday, October 29, 2010
मोहब्बत की जलन बाकी है ..

आँख में रंज है,चेहरे पे शिकन बाकी है ..
अए जिंदगी, तेरे लहजे में थकन बाकी है ...
कटे हैं पर और कफस में हैं परिंदा भी ..
मगर निगाह में मंजिल की लगन बाकी है
हुआ ही क्या जो ये भीगी रही थी कल शब् भर
तुम्हारी आँख में मोहब्बत की जलन बाकी है ..
लाख जख्म को मरहम दिया हैं काँटों ने ..
पर अब भी पाँव में फूलों की चुभन बाकी है ..
अपनी निस्बत में सौदा तो था बराबर का ..
हमारे जिस्म पे अब तेरा कफ़न बाकी है ...
Thursday, October 14, 2010
मेरा नाम मुकम्मल हो जाए ...
आगाज़ जो हो तेरे हाथों से, अंजाम मुकम्मल हो जाए ,
मेरा नाम जुड़े तेरी हस्ती से, मेरा नाम मुकम्मल हो जाए ...
दुनियावालों ने यूँ मुझपर , तोहमत तो हजारों रखी हैं ..
एक तू जो दीवाना कह दे ,इल्जाम मुकम्मल हो जाए ...
ये फूल ,धनक , माहताब , घटा , सब हाल अधूरा कहते हैं
तू छू ले अपनी आँखों से , पैगाम मुकम्मल हो जाए ...
मैं दिन भर भटका करता हूँ , लम्हों की सूनी बस्ती में ..
जो गुजरे तेरी यादों में , वो शाम मुकम्मल हो जाए ...
दे दुनिया मुझको दाद भले ,अंदाज़-ए-सुखन हैं खूब 'रवि '..
एक तेरा तबस्सुम और मेरा , ईनाम मुकम्मल हो जाए ...
मेरा नाम जुड़े तेरी हस्ती से, मेरा नाम मुकम्मल हो जाए ...
दुनियावालों ने यूँ मुझपर , तोहमत तो हजारों रखी हैं ..
एक तू जो दीवाना कह दे ,इल्जाम मुकम्मल हो जाए ...
ये फूल ,धनक , माहताब , घटा , सब हाल अधूरा कहते हैं
तू छू ले अपनी आँखों से , पैगाम मुकम्मल हो जाए ...
मैं दिन भर भटका करता हूँ , लम्हों की सूनी बस्ती में ..
जो गुजरे तेरी यादों में , वो शाम मुकम्मल हो जाए ...
दे दुनिया मुझको दाद भले ,अंदाज़-ए-सुखन हैं खूब 'रवि '..
एक तेरा तबस्सुम और मेरा , ईनाम मुकम्मल हो जाए ...
Saturday, August 1, 2009
तुम्हारी याद तो खुदा सी है

मेरे लम्हों को उम्र बख्शी है ..
तुम्हारी याद तो खुदा सी है ..
तुम्हारा लम्स हैं गुलों पे अभी ,
इनमे खुशबू जो ये बला सी है ..
राज कुछ हैं तेरे तबस्सुम में ,
इसके परदे में एक उदासी है..
सांस की लौ धुआं होने को है ...
जख्म ताजा हैं , जिस्म बासी है
अब सिमटने ही को हैं उम्र-ओ-सफ़र ...
बस कि दुश्वारी इक जरा सी है ...
तेरी सूरत हैं मेरा आब -ए -जमजम ...
आ , कि सदियों से रूह प्यासी है ...
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