Sunday, May 22, 2011

तुम्हारा नाम आया था ...

मैं जब भी टूट कर बिखरा ,
मुकद्दर देख कर सिहरा ,
मुझे ढाढस बंधाने को ..
ग़मों में भी हंसाने को ..
तुम्हारा नाम आया था ...

खिजाँ की बदलियाँ छायीं ,
उजाले जब थे परछाईं ,
दिया बन जगमगाने को...
मुझे रस्ता दिखाने को ...
तुम्हारा नाम आया था ...

दिखी तकदीर की वहशत,
छिनी जब हर मेरी नेमत ,
दुआ में मुझको लाने को ...
ख़ुदा बन कर बचाने को ...
तुम्हारा नाम आया था .....

मगर उस वक़्त-ए-आख़िर जब

उखरती जाती थीं साँसें ,
बुझी जाती थीं ये आँखें ,
मेरी धड़कन बढ़ाने को ...
हमें जिंदा दिखाने को ...
तुम्हारा नाम न आया ....

हमने कर ली जो थी ठानी,
वो पहली बार मनमानी ,
मेरे सजदा-ए-आख़िर पर...
मेरे होठों की जुम्बिश पर ...

मुझे रुखसत कराने को ,
हमें मिट्टी दिलाने को ,
तुम्हारा नाम आया था ...

तुम्हारा नाम आया था ...!

Sunday, May 15, 2011

मैं कैसे लूँ स्वीकार...

प्रिय !मैं कैसे लूँ स्वीकार,
तुम्हारे स्नेह का उपहार ?
मेरा पथ है अश्रु विगलित,
शूल - कंकर, कष्ट-मिश्रित

वेदना ही पूंजी अर्जित
मेरा शोक का व्यापार...
प्रिय !मैं कैसे लूँ स्वीकार,
तुम्हारे स्नेह का उपहार...?

प्रीत का ना भान मुझको
स्नेह का ना ज्ञान मुझको
सृष्टि में हर पग मिले हैं
पीड़ा के प्रतिमान मुझको

कैसे तेरे रंग रंगूँ…
मेरा स्याह है संसार ।
प्रिय ! मैं कैसे लूँ स्वीकार,
तुम्हारे स्नेह का उपहार.?

विधि-रंक सा हूँ जन्मना मैं
मुस्कान की हूँ वर्जना मैं
एक फीका रंग मेरा…
सौ रंग तेरी अल्पना में

मैं कदाचित् दे ना पाऊँ
तेरे स्वप्न को आधार...
प्रिय ! मैं कैसे लूँ स्वीकार,
तुम्हारे स्नेह का उपहार ?
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