तर्क-ए-ताल्लुक निभाएगा कब तक
वो मुझे आज़माएगा कब तक
हद कोई होगी बे-नियाज़ी की
हमसे दामन बचाएगा कब तक
उम्र दहलीज़ पे शमाँ कर दी
वो भी देखें ना आएगा कब तक
ये तश्ना-लब, ये भूख-लाचारी
खुदा ये दिन दिखाएगा कब तक
तीरगी जुगनूओं के बस की नही
जाने सूरज वो लाएगा कब तक
दिल गया होश गया साँसें भी
ये इंतेज़ार जाएगा कब तक
एक तेरी मोहब्बत ने बनाया हैं खुदा मुझको,मैं रोज खल्क करता हूँ नया संसार ग़ज़ल में..
Thursday, July 7, 2011
Friday, July 1, 2011
यूँ सीने से न लगा मुझको....
ए मेरे दोस्त
यूँ सीने से न लगा मुझको ...
दर्द कोई
फिर न छलक जाए
मेरे जख्मों से ...
बाँध कर जब्त कर
रखा है जिसे
कोई आंसू न ढलक आये
मेरी नज्मों से ...
ए मेरे दोस्त ......
यूँ सीने से न लगा मुझको !
मेरी आँखों में
रौशनी नजर आई जो तुम्हे
वो मेरी सुलगी हुई
धड़कन के सिवा कुछ भी नहीं
ख़ाक हो जाए न
ये रेशमी दामन तेरा
मेरी मोहब्बत का अब
हासिल है सिला कुछ भी नहीं
ए मेरे दोस्त ......
यूँ सीने से न लगा मुझको
मैं तो टूटा हुआ
एक तारा हूँ
उफक के दरिया में
डूबता सा कहीं
तू मुझको बाँधने की
न तमन्ना कर
मेरे संग तू भी बिखर
न जाए कहीं ...
ए मेरे दोस्त ......
यूँ सीने से न लगा मुझको
यूँ सीने से न लगा मुझको ...
दर्द कोई
फिर न छलक जाए
मेरे जख्मों से ...
बाँध कर जब्त कर
रखा है जिसे
कोई आंसू न ढलक आये
मेरी नज्मों से ...
ए मेरे दोस्त ......
यूँ सीने से न लगा मुझको !
मेरी आँखों में
रौशनी नजर आई जो तुम्हे
वो मेरी सुलगी हुई
धड़कन के सिवा कुछ भी नहीं
ख़ाक हो जाए न
ये रेशमी दामन तेरा
मेरी मोहब्बत का अब
हासिल है सिला कुछ भी नहीं
ए मेरे दोस्त ......
यूँ सीने से न लगा मुझको
मैं तो टूटा हुआ
एक तारा हूँ
उफक के दरिया में
डूबता सा कहीं
तू मुझको बाँधने की
न तमन्ना कर
मेरे संग तू भी बिखर
न जाए कहीं ...
ए मेरे दोस्त ......
यूँ सीने से न लगा मुझको
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