तर्क-ए-ताल्लुक निभाएगा कब तक
वो मुझे आज़माएगा कब तक
हद कोई होगी बे-नियाज़ी की
हमसे दामन बचाएगा कब तक
उम्र दहलीज़ पे शमाँ कर दी
वो भी देखें ना आएगा कब तक
ये तश्ना-लब, ये भूख-लाचारी
खुदा ये दिन दिखाएगा कब तक
तीरगी जुगनूओं के बस की नही
जाने सूरज वो लाएगा कब तक
दिल गया होश गया साँसें भी
ये इंतेज़ार जाएगा कब तक
8 comments:
तीरगी जुगनूओं के बस की नही
जाने सूरज वो लाएगा कब तक
क्या बात है...बहुत ही खूब.
:)
अनुज!
गायब होने के बाद जो लौटे हो तो कुछ अलग ही रंग लिया आये हो.. अब क्या खुशबू की तरह जुबां खोलूँ .. सारी खुशबू तो तुमने चुरा ली है अनुज, अपनी ग़ज़लों में!!
bhut khubsurat gazal....
उम्र दहलीज़ पे शमाँ कर दी
वो भी देखें ना आएगा कब तक
bahut hi badhiyaa
बहुत ही खूबसूरत रचना, बधाई
इंतज़ार भी कभी जाती है ...ये इंतज़ार चली जाए तो जान में जान आये..बेहद खूबसूरत
अच्छी लगी .
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