Thursday, July 7, 2011

ये इंतेज़ार जाएगा कब तक ...

तर्क-ए-ताल्लुक निभाएगा कब तक
वो मुझे आज़माएगा कब तक

हद कोई होगी बे-नियाज़ी की
हमसे दामन बचाएगा कब तक

उम्र दहलीज़ पे शमाँ कर दी
वो भी देखें ना आएगा कब तक

ये तश्ना-लब, ये भूख-लाचारी
खुदा ये दिन दिखाएगा कब तक

तीरगी जुगनूओं के बस की नही
जाने सूरज वो लाएगा कब तक

दिल गया होश गया साँसें भी
ये इंतेज़ार जाएगा कब तक

8 comments:

shikha varshney said...

तीरगी जुगनूओं के बस की नही
जाने सूरज वो लाएगा कब तक
क्या बात है...बहुत ही खूब.

Shekhar Suman said...

:)

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

अनुज!
गायब होने के बाद जो लौटे हो तो कुछ अलग ही रंग लिया आये हो.. अब क्या खुशबू की तरह जुबां खोलूँ .. सारी खुशबू तो तुमने चुरा ली है अनुज, अपनी ग़ज़लों में!!

विभूति" said...

bhut khubsurat gazal....

रश्मि प्रभा... said...

उम्र दहलीज़ पे शमाँ कर दी
वो भी देखें ना आएगा कब तक
bahut hi badhiyaa

संजय भास्‍कर said...

बहुत ही खूबसूरत रचना, बधाई

Amrita Tanmay said...

इंतज़ार भी कभी जाती है ...ये इंतज़ार चली जाए तो जान में जान आये..बेहद खूबसूरत

Amrita Tanmay said...

अच्छी लगी .

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