आगाज़ जो हो तेरे हाथों से, अंजाम मुकम्मल हो जाए ,
मेरा नाम जुड़े तेरी हस्ती से, मेरा नाम मुकम्मल हो जाए ...
दुनियावालों ने यूँ मुझपर , तोहमत तो हजारों रखी हैं ..
एक तू जो दीवाना कह दे ,इल्जाम मुकम्मल हो जाए ...
ये फूल ,धनक , माहताब , घटा , सब हाल अधूरा कहते हैं
तू छू ले अपनी आँखों से , पैगाम मुकम्मल हो जाए ...
मैं दिन भर भटका करता हूँ , लम्हों की सूनी बस्ती में ..
जो गुजरे तेरी यादों में , वो शाम मुकम्मल हो जाए ...
दे दुनिया मुझको दाद भले ,अंदाज़-ए-सुखन हैं खूब 'रवि '..
एक तेरा तबस्सुम और मेरा , ईनाम मुकम्मल हो जाए ...
8 comments:
badhiya gazal hai ravi
Kya baat h.. behatareen... umda.. tareef shayad kam h....
एक तू जो दीवाना कह दे ,इल्जाम मुकम्मल हो जाए ...
beautiful lines... :)
बहुत सुन्दर्।
beautiful..!
great job buddy :)
बहुत ही ख़ूबसूरत रचना...
आपकी कलम का यही तो जादू है..
यूँही लिखते रहें..
मेरे ब्लॉग में इस बार...ऐसा क्यूँ मेरे मन में आता है....
again
मैं दिन भर भटका करता हूँ ,
लम्हों की सूनी बस्ती में ..
जो गुजरे तेरी यादों में , वो शाम मुकम्मल
हो जाए ...
Beautiful
Bahut bahut shukriya doston ! aapka sneh meri kalam ko hausla deta hai... ise banaye rakhiyega !
@ Deep.....
oye do do baar tareef... ki gal hai ?? :P
Very nice poem.
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