यूँ खुशफहमी न पाला कर
कोई सच नंगा न उछाला कर
ईमान न जीने देगा तुझे
दुनिया में गड़बड़ झाला कर
बस अपना धंधा चमका तू
जनहित के काम को टाला कर
तनख्वाह रखे भूखा सबको
हर माह नया घोटाला कर
हुई ख़त्म गुलामी गोरों की
जो भी धंधा कर काला कर
इक झूठा चेहरा गढ़ हर पल
सच के सांचे में ढाला कर
निज-स्वार्थायन नित बांचा कर
हाथन नोटों की माला कर
जयचंद पाल ले घर में और
हर भगत को देश निकाला कर
16 comments:
are netaon ka to kaam hi yahi hai...achha warnan hai unke krityon ka...
मेरे ब्लॉग पर इस बार चर्चा है जरूर आएँ...लानत है ऐसे लोगों पर
यही तो नेता कर रहे हैं...
आम आदमी की तल्ख़ी साफ दिख रही है इस ग़ज़ल में!!
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (1/11/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com
जयचंद पाल ले घर में और
हर भगत को देश निकाला कर
..
नेताओं पर अच्छा कटाक्ष है
सहमत हैं भाई..........
अच्छा व्यंग है.
“दीपक बाबा की बक बक”
क्रांति.......... हर क्षेत्र में......
.
shi khaa jay chndon kaa hi zmaana he or o deshbkt hen voh szaa bhugt rhe hen. akhtar khan akela kota rajsthan
तनख्वाह रखे भूखा सबको
हर माह नया घोटाला कर
-हर आमजन की व्यथा कहती रचना. बहुत बढ़िया.
जयचंद पाल ले घर में और
हर भगत को देश निकाला कर
bahut khoob ravi ji...
o teri.. Baja di tabiyat se sabki band.. Yaara last sher mein aur ka 'r' gadbad kar rraha hai, sirf 'o' rehne de.. Hehehhe
too good mind blowing gazal
अच्छी अभिव्यक्ति |बधाई
आशा
vyang ke madhyam se sateek prahaar kiya hai!
वाह
मैं महा मिलन के क़रीब हूं
आपके ब्लॉग की चर्चा यहां भी है
अच्छा व्यंग
आप सब सुधी पाठकों का हृदय के अन्तरतम से धन्यवाद ! आपका स्नेह मेरा संबल है…… इसे बनाये रखियेगा !
Post a Comment