आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी प्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है कल (25/10/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर अवगत कराइयेगा। http://charchamanch.blogspot.com
@ क्षितिजा जी… @ संजय जी… @ मोनाली जी। @ दीप @ भाष्कर जी @ वन्दना जी @ महेन्द्र साहब @ श्रीमन @ मनोज जी @ सक्सेना जी @ सांझ @ अवि @ रंजना जी @ उडन तस्तरी जी (आपके नाम से वाकिफ़ नहीं हूँ बन्धुवर)…
आप सभी को अशेष धन्यवाद !
यूँ इकट्ठे धन्यवाद प्रेषित करना यद्यपि अभद्र लग रहा है परन्तु समयाभाव के कारण ऐसा करना पड रहा है क्योंकि शहर से बाहर हूँ और काम बहुत अधिक! क्षमाप्रार्थी हूँ इस धृष्टता के लिये !
14 comments:
nishabd kar diya aapne ravi ji ... kamaal ka likha hai ...
तुम आओ न ,
एक रोज तो दिल में
और लिपटो इस से
अमर -बेल सी ...
देखो तो
इस दिल में कितने
दर्द के जंगल
उग आये हैं .....
... bahut kuch kehti hain ye panktiyaan .. bahad khoobsurat aur bhavmayi
बहुत अच्छे! क्या खूब तरीका निकाला है दर्द के जंगल खत्म करने का:)
खूबसूरत पंक्तियां।
Hum tere ishq me mar mitne ko taiyaar h aur tujhe hamare sath jeena bhi gawara nahi..
behad sundar kavita :)
brilliant.. m speechless
लाजवाब...प्रशंशा के लिए उपयुक्त कद्दावर शब्द कहीं से मिल गए तो दुबारा आता हूँ...अभी मेरी डिक्शनरी के सारे शब्द तो बौने लग रहे हैं...
वाह...
कब तक बनूँ अमर बेल
कभी तुम भी तो बनो
और उस दर्द को गुनो
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (25/10/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com
इस दिल में कितने
दर्द के जंगल
उग आए हैं।
संवेदना को पूर्ण रूप से अभिव्यक्त करती सुंदर कविता।
6.5/10
मौलिक पोस्ट.
अपने मन के भावों को उत्कृष्टता और सलीके से कहना ही
कवि की रचना को सुन्दरता प्रदान करता है.
यह कविता दिल में उतरती है और टिकती भी है.
सुंदर!
आज के युग में अमरबेल ही तो सच है।
लगता है कुछ अच्छा दोगे ...हार्दिक शुभकामनायें !
superrrrrb.......!!!
ur rocking the house buddy !
बस वाह वाह और वाह.....कितने सुन्दर और भावपूर्ण ढंग से आपने शब्दों में गूंथा है प्रणय भावों को...वाह !!!!
बहुत उत्तम भावपूर्ण रचना...
@ क्षितिजा जी…
@ संजय जी…
@ मोनाली जी।
@ दीप
@ भाष्कर जी
@ वन्दना जी
@ महेन्द्र साहब
@ श्रीमन
@ मनोज जी
@ सक्सेना जी
@ सांझ
@ अवि
@ रंजना जी
@ उडन तस्तरी जी (आपके नाम से वाकिफ़ नहीं हूँ बन्धुवर)…
आप सभी को अशेष धन्यवाद !
यूँ इकट्ठे धन्यवाद प्रेषित करना यद्यपि अभद्र लग रहा है परन्तु समयाभाव के कारण ऐसा करना पड रहा है क्योंकि शहर से बाहर हूँ और काम बहुत अधिक! क्षमाप्रार्थी हूँ इस धृष्टता के लिये !
पर अपना स्नेह यूँ ही देते रहियेगा कलम को !
सादर !
Post a Comment