Saturday, October 23, 2010

अमर -बेल




सुना हैं मैंने ,
पेड़ों पर जब
अमर -बेल की लत्ती
कोई चढ़ जाती हैं ..
घूँट -घूँट कर
पी जाती हैं तने को उसके ..
और घने जंगल को
खाली कर जाती हैं ....

तुम आओ न ,
एक रोज तो दिल में
और लिपटो इस से
अमर -बेल सी ...
देखो तो
इस दिल में कितने
दर्द के जंगल
उग आये हैं .....

14 comments:

Dr Xitija Singh said...

nishabd kar diya aapne ravi ji ... kamaal ka likha hai ...

तुम आओ न ,
एक रोज तो दिल में
और लिपटो इस से
अमर -बेल सी ...
देखो तो
इस दिल में कितने
दर्द के जंगल
उग आये हैं .....

... bahut kuch kehti hain ye panktiyaan .. bahad khoobsurat aur bhavmayi

संजय @ मो सम कौन... said...

बहुत अच्छे! क्या खूब तरीका निकाला है दर्द के जंगल खत्म करने का:)

खूबसूरत पंक्तियां।

monali said...

Hum tere ishq me mar mitne ko taiyaar h aur tujhe hamare sath jeena bhi gawara nahi..
behad sundar kavita :)

दिपाली "आब" said...

brilliant.. m speechless

संजय भास्‍कर said...

लाजवाब...प्रशंशा के लिए उपयुक्त कद्दावर शब्द कहीं से मिल गए तो दुबारा आता हूँ...अभी मेरी डिक्शनरी के सारे शब्द तो बौने लग रहे हैं...
वाह...

vandana gupta said...

कब तक बनूँ अमर बेल

कभी तुम भी तो बनो

और उस दर्द को गुनो

आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (25/10/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com

महेन्‍द्र वर्मा said...

इस दिल में कितने
दर्द के जंगल
उग आए हैं।

संवेदना को पूर्ण रूप से अभिव्यक्त करती सुंदर कविता।

उस्ताद जी said...

6.5/10

मौलिक पोस्ट.
अपने मन के भावों को उत्कृष्टता और सलीके से कहना ही
कवि की रचना को सुन्दरता प्रदान करता है.
यह कविता दिल में उतरती है और टिकती भी है.

मनोज कुमार said...

सुंदर!
आज के युग में अमरबेल ही तो सच है।

Satish Saxena said...

लगता है कुछ अच्छा दोगे ...हार्दिक शुभकामनायें !

Anonymous said...

superrrrrb.......!!!

ur rocking the house buddy !

रंजना said...

बस वाह वाह और वाह.....कितने सुन्दर और भावपूर्ण ढंग से आपने शब्दों में गूंथा है प्रणय भावों को...वाह !!!!

Udan Tashtari said...

बहुत उत्तम भावपूर्ण रचना...

Ravi Shankar said...

@ क्षितिजा जी…
@ संजय जी…
@ मोनाली जी।
@ दीप
@ भाष्कर जी
@ वन्दना जी
@ महेन्द्र साहब
@ श्रीमन
@ मनोज जी
@ सक्सेना जी
@ सांझ
@ अवि
@ रंजना जी
@ उडन तस्तरी जी (आपके नाम से वाकिफ़ नहीं हूँ बन्धुवर)…

आप सभी को अशेष धन्यवाद !

यूँ इकट्ठे धन्यवाद प्रेषित करना यद्यपि अभद्र लग रहा है परन्तु समयाभाव के कारण ऐसा करना पड रहा है क्योंकि शहर से बाहर हूँ और काम बहुत अधिक! क्षमाप्रार्थी हूँ इस धृष्टता के लिये !

पर अपना स्नेह यूँ ही देते रहियेगा कलम को !

सादर !

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