Tuesday, October 26, 2010

प्रिज्म और ब्लैक होल


शक्सियत मेरी दुनिया में
किसी सूरज कि मानिंद थी
कि जिसमें आग थी केवल
दहकती,रूह झुलसाती...

तुम आई जो मेरे पास
कोई प्रिज्म हो जैसे ..
मेरे अंतस को सहलाया
तो कितने रंग बिखरे हैं

गुलों को बैगनी रंगत
लहर को नील बख्शा है
फलक है आसमानी सा
धनक धरती पे रखा है

फुलाई पीली सरसों का

हवाओं में घुला है रंग
वो रंगत केसरी सी है
जो बैठी है शफक के संग

हया ने जो चुना है रंग
वो लाली मुझसे बिखरी है
तेरी ही सादगी में घुल

ये रंगत मेरी निखरी है

मगर अब भी मेरी जाना
है दिल में आरज़ू बाकी
कि तुम प्रिज्म सी होकर
उफक कि ब्लैक होल होती ...

मेरा रौशन हर एक कतरा
फकत तेरे लिए होता ..
मैं बस तुझसे गुजरता
और तेरी आगोश में सोता

11 comments:

Aashu said...

"मेरा रौशन हर एक कतरा
फकत तेरे लिए होता ..
मैं बस तुझसे गुजरता
और तेरी आगोश में सोता"

रंगों से लेकर ब्लैक होले तक, दिल के सारे भाव रख दिए हैं आपने अपनी इस कविता में. अच्छी लगी!

http://draashu.blogspot.com/2010/10/blog-post_25.html

Anonymous said...

एक और लाजवाब रचना... क्या बात है.
कभी कभी मेरे ब्लॉग का भी रुख करें...मेरे ब्लॉग पर इस बार अग्निपरीक्षा ....

xitija said...

bahut manmohak.... bahut door ki soch aur alag... bahut khoob ...

Anonymous said...

bohot kamaal ka socha hai dost....beautiful...too good. suraj ka berang hona aur ek saathi ke aa jaane se usi ka rangon mein dhal jaana.....bohot accha laga...great job buddy

दिपाली "आब" said...

outstanding yaara.. Beautiful.. Fantabulous

vandana gupta said...

मेरा रौशन हर एक कतरा
फकत तेरे लिए होता ..
मैं बस तुझसे गुजरता
और तेरी आगोश में सोता

वाह! बेहद उम्दा भाव भरे हैं।

उस्ताद जी said...

5.5/10

रचना में मौलिकता है, नया प्रयोग है, नवीनता है
किन्तु दिल तक भाव सही तरह नहीं पहुँचते.
आपके लेखन में संभावनाएं बहुत हैं.

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

मुझे लगता है की यह रचना मैंने पहले पढ़ी हुई है ....नए बिम्बों से सजी अच्छी रचना ..

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

रवि शंकर जी, विज्ञान के तथ्यों के आधार पर बिलकुल अनूठे ढंग से दिल की बात कही है आपने! किंतु वर्तनी की अशुद्धियाँ बहुत हैं. कृपया पोस्ट करने से पहले अवश्य दोहरा लें. आपकी कविताएँ, आपके उज्जवल भविष्य की ओर इशारा करती हैं.

Ravi Shankar said...

@ आशु जी…
@ शेखर जी…
@ मित्र सान्झ…
@ मित्र दीप…
@ वन्दना जी…
@ श्रीमन्…
@ दी… (हाँ दी, आप पहले भी पढ चुकी हैं,इस रचना को)


धन्यवाद आप सबका,रचना को सराहने के लिये ! स्नेह बनाये रखियेगा !

Ravi Shankar said...

@ सर जी…

अहा…… आपका आना कलम को मुदित कर गया ! आपकी बात गाँठ बान्ध ली है… भविष्य में ऐसी गलतियाँ ना हों इस का पूरा प्रयास रहेगा।

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