Tuesday, October 12, 2010

हथियार कलम बन जायेगी ..


देनी है फिर आज चुनौती,
सत्ता के गलियारों को

गूंगा कर देना है फिर से

धर्म जात के नारों को ..

हो समान अधिकार, बराबर

कद हो सबकी हस्ती का ..
एक कौम हो,एक ही मजहब,
केवल वतनपरस्ती का ..

जिस दिन ऐसे संकल्पों की हूंकार कलम बन जायेगी ..
उस दिन जन-जन के हाथों का हथियार कलम बन जायेगी ..

आज सभी धृधराष्ट्र बने हैं

इस सत्ता के धंधे पर

सर लोकतन्त्र का झूल रहा है

भ्रष्टाचार के फ़न्दे पर्…

संसद है फिर द्युत-क्रीड़ा

गृह सी सजी हुई ..
है आन वतन की

आज दांव पर लगी हुई ..

जिस दिन अर्जुन के धन्वा की टंकार कलम बन जायेगी

उस दिन जन-जन के हाथों का हथियार कलम बन जायेगी..

जिन्दा लोगों की बस्ती में

फिर मरघट सा सन्नाटा है…
सच कहना तो है दूर, ह्रदय

सच सुनने से थर्राता है ..

जीते रहना कुछ भी सह कर,
क्या जीवन का आधार यही ..
जब तक बाकी हो सांस हमें
अन्याय न हो स्वीकार कभी ..

जिस दिन अश्रु के बदले रक्त की धार कलम बन जायेगी ..
उस दिन जन-जन के हाथों का हथियार कलम बन जायेगी ..

8 comments:

Anonymous said...

OMG....!!

awesome buddy....kargil mood mein lagte ho subah subah :)

bohot bohot solid likha hai, great great job!

दिपाली "आब" said...

badhiya

vandana gupta said...

जीते रहना कुछ भी सह कर,
क्या जीवन का आधार यही ..
जब तक बाकी हो सांस हमें
अन्याय न हो स्वीकार कभी ..

जिस दिन अश्रु के बदले रक्त की धार कलम बन जायेगी ..
उस दिन जन-जन के हाथों का हथियार कलम बन जाये

बेहद खूबसूरत संदेश देती रचना।

Avinash Chandra said...

sarkar...aise likhenge ab??

julm roj basakhtaa honge??

Anonymous said...

बहुत ही सुन्दर रचना...क्या बात है.. वाह...मज़ा आ गया..
यूँ ही लिखते रहें...
मेरे ब्लॉग में इस बार..

Dr Xitija Singh said...

bahut daardaar kalam se likha hai aapne aur apne rosh ko vyakt kiya hai .... behtareen rachna ..

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...

आदरणीय रविशंकर जी
नमस्कार !


देनी है फिर आज चुनौती,
सत्ता के गलियारों को
गूंगा कर देना है फिर से
धर्म जात के नारों को


बहुत ओजपूर्ण गीत है , बधाई !
आपकी अन्य रचनाएं भी पढ़ीं , अच्छी लगीं ।

शुभकामनाओं साहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार

Mohan 'Kalp' said...

wakai lazwab !! kabile taarif janab............

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