एक तेरी मोहब्बत ने बनाया हैं खुदा मुझको,मैं रोज खल्क करता हूँ नया संसार ग़ज़ल में..
Friday, October 1, 2010
भाव कहाँ से लाऊं मैं
तुम बिन गीत भले रच दूँ
पर भाव कहाँ से लाऊं मैं ..
तुम मेरे विचारों की मेधा
तुम शब्दों का अनुकूल चयन
तुम सब दृश्यों का परिपेक्ष्य
तुम ही हो कवि का अंतर्मन ...
तुम बिन अपनी रचना के
निहितार्थ कहाँ से पाऊं मैं
तुम बिन गीत भले रच दूँ
पर भाव कहाँ से लाऊं मैं ..
तुम सब रागों की सरगम हो
तुम साँसों का आरोहन
तुम नृत्यों की भाव -भंगिमा
तुम्ही कलाएं मनभावन ...
तुम न हो तो तबले पर
पद -क्षेप कहाँ बैठाऊं मैं
तुम बिन गीत भले रच दूँ
पर भाव कहाँ से लाऊं मैं ..
तुम रंगों की परिभाषा
तुम चित्रों का संदर्श प्रिये ..
तुम जड़ छाया को चेतन करती
तूलिका का स्पर्श प्रिये ...
तुम बिन जीवन के चित्र -पटल पर
जड़ होके न रह जाऊं मैं ...
तुम बिन गीत भले रच दूँ
पर भाव कहाँ से लाऊं मैं ....
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3 comments:
awwwww......beautiful. aur rhythm to..bohot hi perfect hai. haan, hindi kaafi hardcore hai, ye mujhe school textbooks ki yaad dilaati hai ;)
par kavita bohot bohot sundar hai...sach
I love the purity sir ji... aapne waisa hi rakha hai ise
Bahut sunder rachna.. Thnks for sharing such grt work..
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