Sunday, March 13, 2011

कुछ वित्तीय खुराफ़ातें … :)

ये जालिम ज़माना मुझ प्रेमी-मन को जबरन वित्तीय गणित सिखाने की कोशिश में है कि हम कुछ इन्सान हो जायें ! और हम ठहरे देसी कुत्ते की खालिस दुम …… "इको-नामिक्स" में भी "प्रेमो-नामिक्स" पढ़ने लगे और जो कुछ पढ़े वो आप सब के सामने रख रहे हैं ………… झेलिये ... :P

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इन्फ्लेशन

मैं ढेरों खर्चता हूँ
अपने ख्वाब के सिक्के
तब कहीं जा कर थोड़ा सा
"तुम" खरीद पाता हूँ

इन्फ्लेशन* बहुत बढ़ गयी है
तुम्हारे तसव्वुर के देश में.

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घाटा

मैने तो खर्च डाली है
सारी मुहब्बत तुम्हारे कोटे की
तुमने ही जाने क्यों भरा नही
अपने हिस्से का उलफती-राजस्व

कहो तो कैसे कम होगा भला
इस बरस का ये मोहब्बतीय घाटा.

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कमीशन

मैं हर रोज
चाँद से खरीदता हूँ
तुम्हारे ख्वाब के शेयर...
बेईमान रात
हर रोज काट लेती है
कमीशन उस से...

"सेबी"* सूरज से
ज़रा कर दो ना शिकायत उसकी !




इन्फ्लेशन* --inflation -- मुद्रास्फीति
सेबी -- SEBI -- Securities & Exchange Board of India.

13 comments:

vandana gupta said...

वाह जी वाह्…………क्या खूब अन्दाज़-ए-बयाँ है। बहुत पसन्द आया।

vandana gupta said...

आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (14-3-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।

http://charchamanch.blogspot.com/

संजय @ मो सम कौन... said...

वित्त सरीखे नीरस विषय से ये सब खींच लाये हो, बड़े विकट खिंचैया हो अनुज:)
ये घाटा कोई इसी बरस का है, चिर सनातन है, इसकी तो आदत ही डल जाये तो बेहतर, हा हा हा।

आज हमारा नमन स्वीकार करो।

Dr Xitija Singh said...

waah ravi ji ... aapki har rachna kamaal ki hai ... bahut khoob:)

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

अगर सिर्फ वित्तीय कविताएँ होतीं तो कहता कि "मनमोहनी" कविता है!!लेकिन अंतिम नज़्म ओ मेरे डिपार्टमेण्ट की बात कह गई!! छा गये रवि शंकर! सुबह मेरे वकील बनकर और अभी अपना मुरीद बनाकर!!

अजय कुमार said...

अच्छा अंदाज है

Dr (Miss) Sharad Singh said...

वाह..क्या खूब ...

दिपाली "आब" said...

mast hai

Anonymous said...

wah beta.....zehen ke parliament mein budget pesh ho raha hai.....badhiya hai :)

take care buddy

मनोज कुमार said...

सलिल जी के लिए - ये कविताएं ‘मन मोहिनी’ ही हैं!
रवि जी,
बहुत ही प्रभावी कविताएं।

प्रिया said...

pata hai Economist and Accounts professionals ko dekh kar hairat hogi..ki kya terms aise bhi istemaal kiya jaa sakte hain...Fantastic :-)

Amrita Tanmay said...

Ravi jee , achchhi lekhani hi vishyon ke athah samandar se rachana rupi moti nikal lati hai anytha one typed kekhan padhana shuru kare to lagega ki padha hua hai..bahut achchhi lagi ...sach...ab kis subject ka number hai ? physics bhi achchhi lagi....

Dr.Kumar Vishvas said...

बहुत अलग ....सुन्दर. बधाई
डॉ कुमार विश्वास

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