उस रोज़ फलक हिंडोला था
इक ख्वाब देर तक डोला था
तब चाँद उठा था दरिया से
जब शाम ने सूरज घोला था
कुछ बादल थे सौगात मिले
और कुछ तारों को मोला था
फिर उसके दिल पे दस्तक कि
और उसने झरोखा खोला था
दिल दोनों छिटक कर उछले थे
और हमने उफक टटोला था
लम्हों को थाम दिया उसने
ये वक़्त भी कितना भोला था
पर आँख खुली तो गायब था
ख़्वाबों का उड़न खटोला था
ये किस्सा सा है,एक ख्वाब का,जो हक़ीकत के बेहद करीब का है पर फिर भी एक ख्वाब कि ही तरह झूठा :)। Confused !!
मैं भी Confused हूँ कि इसे ग़जल कहूँ या नज़्म……! खैर जो भी है…झेलिये
16 comments:
ख्वाबों के उड़न खटोले से हिंडोला तक का सफ़र अच्छा रहा।
तब चाँद उठा था दरिया से
जब शाम ने सूरज घोला था
ख़ूबसूरत रचना...
उड़नखटोले में तो कई बार बैठी हूँ
लेकिन ख्वाबों वाले उड़नखटोले में
पहली बार बैठी हूँ....!
और इस उड़नखटोले में बैठने का अनुभव
इतना सुखद रहा कि पूछिए मत !!!!
आपने तो एकदम से फलक पर ही बैठा दिया
थोड़ी देर के लिए ही सही.....!!
गज़ल ही कह लो अनुज!!इससे जो ख़ूबसूरत भावनाएँ बिखरी हैं उनकी सुंदरता थोड़े न कम हो जाएगी...सारी कायनात बिखरी है इस गज़ल के अशार में!
पिक्चर परफेक्ट!!
ye nazm hui... Aur meri favo bhi.. Jiyo ravi :)
bahut hi sundar...
चाहे कुछ भी हो क्या फर्क पड़ता है, अच्छी होनी चाहिए...
खूबसूरत नज़्म ..ख़्वाबों के हिंडोले जैसी ही
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (10-3-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
so sweet..... :)
अनुज रवि,
आज हँस सकते हो मेरा कमेंट पढ़कर। जैसे जैसे इस रचना को पढ़ता गया, कालजयी रचना ’रणबीच चौकड़ी भर भर कर..’ दिमाग में कौंधती रही। भावों का बेशक कोई साम्य नहीं, लेकिन लय और रवानी एकदम वैसी ही है। वो लेकर सवार उड़ जाता था, ये ख्वाब और ख्यालों में बहा ले गई।
मरहबा ही कह्ते हैं न, जब बहुत खूब कहना हो? वो क्या है कि उर्दू में हाथ और भी तंग है अपना:)
गुड लक, शुभकामनायें।
खुबसुरत रचना। दिल में उतर गई। आभार।
खुबसुरत रचना। धन्यवाद|
khubsoorat shabdon ka chitran man ko mugdh kar gaya...
मनोज जी…
रश्मि जी…
पूनम जी…
आपको इस उड़नखटोले ने आनंद दिया…… मन प्रफ़ुल्लित हुआ ! धन्यवाद !
दाऊ……
:)
दीपी…
हम्म्म्…… जी रहा हूँ यारा ;)
शेखर जी…
सही बात कही दोस्त… अच्छा होना जरूरी है चाहे कुछ भी लिखो।
Janab..agar ijajat ho to udan khatole ki hi savari karti rahun ? utarne ka jee nahi ho raha hai ..
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