विदा होती बहन ...........
क्यों , विदा होती बहन ?
दिल के अन्दर अब कौन भला फिर झांकेगा ,
मेरे अश्कों में अपना हिस्सा बांटेगा ,
झुलसे अंतस को कौन भला फिर सींचेगा ,
भर गोदी में फिर कौन प्रेम से भींचेगा,
अम्मा की लाडो , बाबा की आँखों का तारा ....
घर की बगिया में करती थी मधुर -मधुर गुंजन ...
विदा होती बहन ...........
क्यों , विदा होती बहन ?
मेरी खुशियों में अब कौन यहाँ मुस्कायेगा ,
पीड़ा में फिर हँसना कौन सिखायेगा ,
मेरी शरारतों पर माँ -बाबा के आगे ,
बन ढाल भला फिर मुझको कौन बचायेगा ,
अब कहाँ मिलेगी मुझे .....
स्नेह की छाँव सघन ....
विदा होती बहन ...........
क्यों , विदा होती बहन ?
आंसू का गुब्बार नयन से फूट रहा ,
दिल ही दिल में दिल भी है कुछ टूट रहा ,
कैसी अलबेली रीत भला यह दुनिया की ,
बचपन , सखियाँ , घर का आँगन छूट रहा ,
आबाद चली करने को ......
फिर एक और चमन .......
विदा होती बहन ...........
क्यों , विदा होती बहन ?
[चार साल पहले सिसका था मन और मेरी निजी डायरी के गीले सफ़हों के आँचल में जा छुपी थी पीड़ा…… पर आज सलिल सर की पोस्ट ने इसे बाहर निकाला है। वहाँ उनकी पोस्ट पर बिना कुछ कहे चला आया क्योंकि मन भर आया था । जो वहाँ कहना था वो यहाँ कहा है ]
22 comments:
रविशंकर जी! अब मेरी बारी है कि मैं सिर्फ नम आँखें (जो शायद टिप्पणी बॉक्स मे दायरे में नहीं समा सकतीं)लेकर यहाँ से विदा लूँ..
एक अनुरोधः
सलिल सर न कहा करें, अजीब सा बेगानापन अनुभव होता है. सलिल जी मित्रवत, सलिल भाई समवय और सलिल भैया मुझे बड़प्पन का एहसास कराता है. इस ब्लॉगवसुधा को ही कुटुम्ब बना सका तो अपना लेखन सार्थक मानूँगा!!
ना ना… बेगाने तो आप चाह कर भी नहीं हो सकते :)। और आप अनुरोध नहीं आदेश कर सकते हैं । चलिये, मेरे दोस्त आपको "दद्दू" कहते हैं पर मैं "दाऊ(बड़े भैया)" कहूँगा।
नमन।
और हाँ दाऊ, ये रवि शंकर "जी" ???
सलिल भाई की पोस्ट पढकर यहां आ रहा हूं। दोनों में भावनाओं की इतनी समानता है कि आंखें वहां नम हुई आंसू यहां बह रहे हैं।
@ मनोज जी…
आपने पीड़ा को मह्सूस किया…आभार आपका !
रवि, सलिल भैया के यहाँ से होकर आया हूँ। आज तो यार मैं भी एक लिंक दे देता हूँ:)
http://www.youtube.com/watch?v=HE8FE7Vk2TU
रविशंकरः
लिंक बिखेरकर जाने वालों से सावधान.. (अगली बार से)
ह्म्म्म भावुक करनेवाली कविता है.
यह क्या है साहब...?
ऐसा क्यूँ हैं साहब...?
गीला सा है,
पर इस गीलेपन में,
सुकूँ हैं साहब..
और ये जो लिंक दिया है संजय जी ने, वही सबसे पहले मुझे भी याद आता है।
बहुत मार्मिक, भावपूर्ण और प्रवाहमयी प्रस्तुति..
अरे तुमने और सलिल जी ने तो रुलाने की ठान ली है ..बस भी करो भाई.
वैसे पूरी पढ़ नहीं पाई कविता, जितनी पढ़ी वो कैसी है यह कहने की जरुरत नहीं शायद है न ...
बहुत मार्मिक, भावपूर्ण और प्रवाहमयी प्रस्तुति
गणतंत्र दिवस की हार्दिक बधाइयाँ !!
Happy Republic Day.........Jai HIND
रवि जी ... दिल भर आया ... मैं समझ सकती हूँ विदाई का पल कैसा होता है .... :(
बहुत सुंदर ....आँखें नाम कर देने वाली प्रस्तुति....
padhi thi ye kuch roz pehle, na tab kuch ke paayi thi, na ab keh sakti hoon....
and u know why.....
take care buddy
शुक्रिया आप सबका मेरे मन की पीड़ा को साझा करने के लिये।
कुछ भावनाएं ऐसे होतें हैं जिसके लिए कोई शब्द नहीं होते ....ये कुछ ऐसा ही है .
मेरी खुशियों में अब कौन यहाँ मुस्कायेगा,
पीड़ा में फिर हँसना कौन सिखायेगा,
मेरी शरारतों पर माँ -बाबा के आगे,
बन ढाल भला फिर मुझको कौन बचायेगा.
ham bhi mahsoos kar sakte hai kya beetti hai vidai ke waqt jab hamari bahan hamse door jati hai
G didi
G didi
Chu liya bhaiya Apne dil aj....
क्या कविता है, जो मन के अंतस को छूगया ।।।।
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