Thursday, December 9, 2010

तू छोड़ दे जन्नत मेरे ख़ुदा...

हम काफिरों को बक्श दे रहमत मेरे ख़ुदा !
आ दिल में बस,तू छोड़ दे जन्नत मेरे ख़ुदा !

हर लम्हा सुर्ख है यहाँ इन्सां के खून से
क्यों सिरफिरों को बख्श दी ताक़त मेरे ख़ुदा

है क्या बिसात गाँधी-ओ-नानक-ओ-बुद्ध की
अब हो गए ये माजी की जीनत मेरे ख़ुदा

जो जिस्म से शफ्फाक हैं पर दिल से कोयले
कैसे करूँ मैं उनकी अब इज्ज़त मेरे ख़ुदा !

काफिर ही कहो मुझको,पर इन्सां तो बचा हूँ
फिरती नहीं हर रोज़ ये नीयत मेरे ख़ुदा !

आ,फिर रहीम-ओ-राम बनके इस जहान में
लुटती तेरे जहान की अस्मत मेरे ख़ुदा !

11 comments:

Anonymous said...

हम काफिरों को बक्श दे रहमत मेरे ख़ुदा !
आ दिल में बस,तू छोड़ दे जन्नत मेरे ख़ुदा !

Ohh my my...kya khoob kaha yaara, awwesome. khuda ek baar jannat chod, yahan aakar to dekhe...

too good buddy

हर लम्हा सुर्ख है यहाँ इन्सां के खून से
क्यों सिरफिरों को बख्श दी ताक़त मेरे ख़ुदा

killller....!!!

काफिर ही कहो मुझको,पर इन्सां तो बचा हूँ
फिरती नहीं हर रोज़ ये नीयत मेरे ख़ुदा !

wahhh..!

bohot badhiya ghazal likhi hai yaara...great job.

monali said...

Har sher ek se ek behatreen.. behad pasand ayi sach ko sajha karti ye lines :)

vandana gupta said...

बहुत सुन्दर गज़ल्……………हर शेर शानदार्।

rashmi ravija said...

हर लम्हा सुर्ख है यहाँ इन्सां के खून से
क्यों सिरफिरों को बख्श दी ताक़त मेरे ख़ुदा

कमाल की पंक्तियाँ हैं.....वैसे पूरी ग़ज़ल ही शानदार है

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

आपकी यह रचना कल के ( 11-12-2010 ) चर्चा मंच पर है .. कृपया अपनी अमूल्य राय से अवगत कराएँ ...

http://charchamanch.uchcharan.com
.

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

है आईना ये आज के काले समाज का
अब छीन ले बीनाई की रहमत मेरे ख़ुदा.
.
मैं हूँ खमोश आपके अशआर पर रवि
तारीफ के दो लफ्ज़ अता कर मेरे ख़ुदा!

अनुपमा पाठक said...

bahut sundar abhivyakti!

संजय @ मो सम कौन... said...

काफिर ही कहो मुझको,पर इन्सां तो बचा हूँ
फिरती नहीं हर रोज़ ये नीयत मेरे ख़ुदा !

बहुत अच्छे भाव पिरोये हैं रवि, बहुत खूब।

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...

रवि शंकर जी
सादर अभिवादन !

अंतर्जाल-भ्रमण करते हुए अचानक आप तक पहुंचा हूं , कदाचित् पहली बार …
लगा, मेरे मिज़ाज के ही हैं आप

प्रस्तुत ग़ज़ल का हर शे'र काबिले-ता'रीफ़ है …
यह कुछ अधिक ही पसंद आया -

काफिर ही कहो मुझको,पर इन्सां तो बचा हूं
फिरती नहीं हर रोज़ ये नीयत मेरे ख़ुदा !


पूरी ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद !
अभी आपकी पुरानी पोस्ट्स भी देखने को मन है …

शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार

Ravi Shankar said...

@ saanjh... :)

@ Monali ji..

@ vandana ji

@ Rashmi ji..

@ Sangeeta di...

@ Salil sir...

ahaa sir ji... kisi shayar ko agar shayaraana daad mil jaaye is se behtar compliment nahi ho sakta uske liye.. :)

@ Anupama ji..

@ Rajendra ji..

@ Satyam ji..

@ Shekhar ji...

Aap sab sudhi paathakon ka hriday ke antartam se aabhaari hoon... Sneh banaye rakhiyega !

Geeta Malhotra said...

Ek ek sher laajawab hai

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