समा ले खुद में मुझे और मुझको तू कर दे
रगों में दर्द जमा है, उसे लहू कर दे ।
मेरी हयात के लम्हों पे नाम उसका हो
मेरी वफ़ा को खुदा बस मेरा जुनू कर दे ।
वो गर उठे तो झुका दे फलक परस्तिश में
नज़र मिले तो निगाहों को बावजू कर दे* ।
खुले हैं जख्म कई , रिस रहा है पैराहन
है कोई इल्म जो निस्बत को भी रफू कर दे ?
मैं सारी उम्र तेरी ख्वाहिशों के नाम हुआ
तू एक बार फकत , मेरी आरज़ू कर दे !
* के निशान वाला मिसरा "मिसरा-ए-सानी" है जिसकी तरह (रदीफ़ और कफ़िये पर) ये ग़जलनुमा चीज आप सब के सामने जलवाफ़रोश हुई है :)
19 comments:
"इन शेरों को, इन अल्फ़ाजों को जो मानी कर दे,
खुदा, उस जलवागर को मेरे यार के रूबरू कर दे।"
अनुज, ऐसी गज़ल पर निहाल हुआ जा सकता है, निसार हुआ जा सकता है। जियो राज्जा, जियो।
(पढ़कर हंसना मत:))
ये सादा लफ्ज़,ये मानी,ये गज़ल के तेवर,
ख़ुदा तू शोहरते रवि को कू ब कू कर दे!
Main tere naam saansein bhi likh dun..
tu ek baar faqat meri aarzu kar de
Aiyaa.. Ittna pyaara misra hai ke kya kahu.. Hehehehe..
Brilliant buddy, bahut pyaari gazal kahi hai.. Loved it.
o teri mujhe nahi pata tha yahan har koi teri gazal pe sher keh raha hai.. Ravi re teri to chal nikli :p
main bhi kahun.....???
he he ha ha ha.....sher kahun, main...??? itni tehzeeb kahan se laaun, meri naukri to bakwaas karne ki rahi.... ;)
mast ghazal likhi hai yaara, roomaani ho gaye, tooo good
खुले हैं जख्म कई , रिस रहा है पैराहन
है कोई इल्म जो निस्बत को भी रफू कर दे ?
killer......!!!!!!! awesome's not the word, tooo good :)
रवि बाबू,
जिसे ग़ज़ल लिखना नहीं आता हो, उसे एंट्री नहीं मिलेगी क्या?
आह!
वाह!
कराह!
(दाद नहीं :)) क़ुबूल फ़रमायें जनाब।
खुले हैं जख्म कई , रिस रहा है पैराहन
है कोई इल्म जो निस्बत को भी रफू कर दे ...
बहुत खूब ... बला की खूबसूरत ग़ज़ल है ... हस शेर कमाल का है ...
मेरी हयात के लम्हों पे नाम उसका हो
मेरी वफ़ा को खुदा बस मेरा जुनू कर दे ।
बहुत खूब ! हरेक शेर लाज़वाब..
रवि भाई, गजब लिखते हो आप। शुभकामनाएं स्वीकारें।
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शिकार: कहानी और संभावनाएं।
ज्योतिर्विज्ञान: दिल बहलाने का विज्ञान।
मेरी हयात के लम्हों पे नाम उसका हो
मेरी वफ़ा को खुदा बस मेरा जुनू कर दे ।
खूबसूरत जज़्बात
और बहुत खूबसूरत लफ़्ज़ों का लिबास
वाह !!
मैं सारी उम्र तेरी ख्वाहिशों के नाम हुआ
तू एक बार फकत , मेरी आरज़ू कर दे !
क्या बात है...बहुत ही ख़ूबसूरत ग़ज़ल
हुकुम…………
बिल्कुल नहीं हँसा… सच्ची ! :)
दाऊ……
:) :)
दीपी………
हाँ यारा… चल निकली ! तुम सब के पहियों के दम पर :)
साँझू……
हाँ, तो तू अपनी नौकरी ही कर……! कहाँ शेर-गीदड़ मारती फिरेगी :P :P
हे अविनाशी !
"आह !" "वाह !" और "कराह !" तीनों कबूल हुए अब बस "सलाह" की दरकार है :)
बहुत खूब ! हरेक शेर लाज़वाब..
गजल जब इतनी खुबसूरत हो तो ...खुशबु की जवां ही...... बोलना पड़ेगा... गुलाब सी महकती हुई गजल..बेहद खुबसूरत ..
वो गर उठे तो झुका दे फलक परस्तिश में
नज़र मिले तो निगाहों को बावजू कर दे ।
अब इतना अच्छा भी नहीं लिखना चाहिये कि तारीफ़ के शब्द ही ना जुटा पायें हम जैसे लोग :)
agree wid saanjh... awesome is not the word.... its killer !!!
"मैं सारी उम्र तेरी ख्वाहिशों के नाम हुआ
तू एक बार फकत , मेरी आरज़ू कर दे !"
वाह
वाह
क्या बात है .... कुर्बान
ग़ज़ल क्या बस गजब है
प्रिय बंधुवर रविशंकर जी
सस्नेहाभिवादन !
दानिश जी जैसे गंभीर सुख़नवर किसी रचना पर कुछ कहदें , उसके बाद कुछ नहीं बचता … :)
बहुत ख़ूब ! मुबारकबाद !
♥ बसंत ॠतु की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
♥
- राजेन्द्र स्वर्णकार
behad khoobsurat.
नासवा जी…
कैलाश जी…
ज़ाकिर भाई…
दानिश जी……
रश्मि जी…
आप सबों ने स्नेह दिया … आभारी हूँ !
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