ज़िन्दगी का त्रिभुज
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बचपन में
कई बार पढ़ा था
भुजाएं त्रिभुज की
अपने अनुपात बदल कर
कोणों के मान
बदल देतीं हैं अक्सर
उम्र मुद्दत से खड़ी है
वक़्त के त्रिभुज में
हर पल ख़ुशी और ग़म
के अनुपात गिनती हुई
और मैं
कब से बैठा
हिसाब लगा रहा हूँ जाने ..
मगर ज़िन्दगी
हर बार "थीटा" की तरह
मायने बदल जाती है !
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धरती का कोर
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मेरे जेहन की धरती में
कुछ पत्थर से एहसासों
के बहुत नीचे
तुम्हारी याद का गर्म लावा
चक्कर लगाता रहता है हरदम
और उस से निकलने वाली तरंगें
अपने महफूज़ आगोश में
समेटे रहती हैं मुझको ...
जहाँ ग़म का कोई सूरज
कभी जला नहीं पता है मुझको
बहुत सकते में हूँ जानाँ
जबसे सुना है ये
कि किसी दिन
धरती का कोर
रुक जायेगा जम कर
और ये इलेक्ट्रोमैग्नेटिक कवच
टूटेगा… बिखर जाएगा !
मैं जानता हूँ यूँ
कि मुहब्बत
किसी आइन्स्टीन या डार्विन का
सिद्धांत नहीं ..
मगर सच्ची बताओ जानाँ
कहीं तुम भी तो नहीं ................................. !
[एक जियो-फिज़िक्स के जर्नल में एक शोध पत्र प्रकाशित हुआ था कुछ वक़्त पहले की धरती का कोर [क्रोड़] जो लगातार घूमता रहता है और जिस से उत्पन्न इलेक्ट्रो-मॅग्नेटिक फील्ड धरती की रक्षा करता है विध्वंसक सौर-तरगों [अल्ट्रा-वायलेट और इन्फ़्रा-रेड रेज] से, उसकी गति धीमी हो रही है और कुछ सौ सालों में ये रुक जाएगा और ये फील्ड ख़त्म हो जाएगी । इस विषय पर एक फ़िल्म भी बन चुकी है।....चूँकि फिज़िक्स मेरा पसंदीदा सब्जेक्ट रहा है और वो जर्नल मेरे हाथ आया कुछ वक़्त पहले तो कुछ कहने की कोशिश की है इस पर.... झेलिए ! :P :P]
24 comments:
झेला नहीं जी आस्वादन किया। साइंस और अदब का मेल पसंद आया।
"और मैं
कब से बैठा
हिसाब लगा रहा हूँ जाने .."
विषय की कोई साम्यता नहीं, लेकिन हिसाब लगाने वाली बात पर बरबस ही शिव बटालवी याद आ गये,
"कितनी बीत गई, कितनी बाकी है,
मुझको ये ही हिसाब ले बैठा,
मुझको तेरा शबाब ले बैठा"(हिंदी तर्जुमा है अनुज, अगर पहले से पढ़ी हो ये नज़्म तो इग्नोर कर देना और न पढ़ी या सुनी हो तो जरूर नजर डालना। http://mosamkaun.blogspot.com/2010/04/blog-post_24.html
दाऊ को मत बताना, नहीं तो कहेंगे लिंक बिखेरने वलों से सावधान:)
दूसरी नज़्म में,
मैं जानता हूँ यूँ
कि मुहब्बत
किसी आइन्स्टीन या डार्विन का
सिद्धांत नहीं ..
मगर सच्ची बताओ जानाँ
कहीं तुम भी तो नहीं ................................
कुर्बान होने लायक लाईने हैं। हो जाते, अगर अब तक बचे होते तो:)
जौमेट्री ,फिजिक्स सब समझा दिया मोहब्बत का...धन्य है आप....
रवि बाबू!
कमल की जियोमेट्री और जियोफ़िजिक्स है... कौन कहता है कि केमिस्ट्री ज़बर्दस्त है... मैंने भी चार पाँच साइण्टिफिक नज़्में लिखी थीं.. लिंक नहीं दे रहा..
इससे पहले कि स्वप्निल बोलकर जाए,मैं ही कह देता हूँ कि क़तल हैं दोनों..
वैसे मेरे गुरुदेव के.पी.सक्सेना कहते हैं कि ज़िंदगी में ज्योमेट्री की तरह हर कोण पर कटने से तो बुक बाइण्डिंग अच्छी है कम से कम एक सरल रेखा में जोड़े तो रखती है!!
बधाई मेरीतरफ से!!
रवि बाबू,
अब तो हम भी लिंक देकर जाएँगे अपनी कविताओं का.. पहले देख लेते तो उसी समय दे डालते..
http://samvedanakeswar.blogspot.com/2010/05/blog-post_25.html
'त्रिभुज' संभवतः मैंने पहले भी पढ़ा है, सहमति का मुहर लगाइए।
जियोफ़िजिक्स तो मेरे आस-पास का विषय है न? फिर 'धरती का कोर' लिखना तो मुझे चाहिए था न?
लेकिन लिखा आपने, और खूब लिखा। सिद्ध होता है कि मुहब्बत विज्ञान के पार-अपार है।
ऐसा लिखते रहा करिए, और लिंक भी मिला करते हैं मुझे। संजय जी वाला लिंक तो देख लिया था, सलिल जी वाला देखने जाता हूँ। :)
मैं लिंक नहीं दूँगा, क्योंकि एक तो अंग्रेजी में हैं, दूसरे ब्लॉग पर नहीं है :)
और अभी घर से लौटा हूँ, मैं दिन में ४-५ दफ़ा कुर्बान हो सकता हूँ, तो फिर से कुर्बान (I'm pumped up you know) :)
ravi beta.....tu pagal ho gaya hai....!!!
:P
yahi hota hai....zyada padhaai, zyaada mohabbat aur uspar zyaada poetry.....yahi hota hai ;)
yaara, aaraam kar...lambi saans le, paani vaani pi :D
ok ok, jokes apart...kamaal ki nazm hai yaara.
तुम्हारी याद का गर्म लावा
चक्कर लगाता रहता है हरदम
wowww....awesome comparison....infact dono nazmein bohot acchi hai...i cant chose between lines....awwwesome
damn...!!! mujhe bhi ab padhaai shuru kar deni chahiye....aajkal poetry intelligent hoti jaa rahi hai :)
विषय कोई भी हो ...आशय तो वही होता है जो आप कहना चाहते है और हम समझ लेते है...... अच्छा लगता है आपको पढ़ना ...बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति .अच्छा लगा....
हे भगवान् ये क्या है...
ऐसा भी लिख सकते हैं क्या ???
वाकई में धन्य हैं प्रभु आप....:P
इस गणित को फेसबुक पर बांटने जा रहा हूँ...
इतनी अच्छी जगह थोड़ी भीड़ तो आनी ही चाहिए न....
जानदार और शानदार प्रस्तुति हेतु आभार।
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कृपया पर्यावरण संबंधी इस दोहे का रसास्वादन कीजिए।
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शहरीपन ज्यों-ज्यों बढ़ा, हुआ वनों का अंत।
गमलों में बैठा मिला, सिकुड़ा हुआ बसंत॥
सद्भावी-डॉ० डंडा लखनवी
Beautiful...ek soch aur muskurahat dono bikhar gai...scientific terminology ka aisa poetic use...sach hai jahan na jaaye ravi wahan jaaye kavi :-)
@ प्रिया.... correction... यहाँ रवि और कवि दोनों पहुँच गये :)
इसे कहते हैं साइंस स्ट्रीम की कविता... बहुत ही बढ़िया :)
सांझ बिलकुल सही कह रही है...पढ़ाई फिर से शुरू कर देनी चाहिये... कविताएँ intelligent होती जा रही हैं आजकल :)
@richa
o madam, aap kyun karoge padhaai...aap to already jupiter pe jaakar PhD kar aaye ho....tirsathve chaand par nazm likh di....padhai ham jaise naamaakool karenge...
;)
@ सोमेश जी…
आपने रसास्वादन किया… कलम पुलकित हुई । धन्यवाद !
@ हुकुम… और दाऊ…
मेरी हर नज़्म को कुछ ऐसी लिंक्स दे कर स्पेशल बना दिया कीजिये। कोइ दिन ऐसा आ सकता है जब मैं लिखना छोड़ दूँ या छूट जाये पर पढने की आदत तो साँसों के साथ ही जायेगी। और दाऊ की नज़्में पढ के लगा कि हमने तो बस सतही नज़्में कही हैं, असल टेक्नोलाजी तो आपकी नज़्मों में है। बस मजा आ गया !
नमन!
@ शिखा दी…
शुक्रिया दी !
@ अवि प्यारे…
ये बहाने नहीं नहीं चलने के… अंग्रेजी माना हमारी अच्छी नहीं [बोल तो हम ऐसे रहे हैं जैसे अपनी हिन्दी ही बहुत अच्छी हो ;)] पर जोड़-तोड़ कर पढ ही लेंगे या फिर पूछ लेंगे किन्ही विद्वान से। सो जल्दी से ब्लॉग पर डालो और लिन्क हमें दे डालो… :)
@ साँझू अम्मा :P
हाँ रे…… सच कहा तूने… पागल तो मैं हो ही गया हूँ । ऐसा करता हूँ आज से पढाई और पोएट्री छोड़ देता हूँ…… क्योन्कि मुहब्बत तो मजबूरी है छूट नहीं सकती :P
mere bacche....tujhse kuch nahin chhootega....dekh liyo.....haan padhai ki guarantee nahin hai, par baaqi do marz...chronic hain ;)
पानी यूं तो 100 डिग्री पर उबलता है
पर दबाव ज्यादा हो, तो 20 डिग्री पर भी मचलता है
रवि भाई, ऐसी साइंटिफिक सोच काश सब में हो।
बहुत बहुत बधाई।
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ब्लॉगवाणी: एक नई शुरूआत।
@ अमृता जी…
@ शेखर भाई…
@ लखनवी जी…
बहुत बहुत धन्यवाद आप सबका !
@ प्रिया जी…
@ ॠचा जी…
@ राजेश जी…
@ ज़ाकिर भाई…
बहुत आभार आप सबका। आपकी चुटीली टिप्पणियों ने मन हर्षित किया।
yahin ghoom rahe ho.....? gud mornin :)
hmmm.... humeshaa ki tarah late-lateefi :P
jab chale jaao tab log gud morning wish karte hain... !
sun yaara... tu ek mail kar mujhe..id chahiye !
क्या बात है...बिलकुल अलग अंदाज़ लिए हुए हैं नज्मे...
साइंस और कविता का सुन्दर सामंजस्य
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