हो दम साधे यूँ मौन खड़े,
क्यों हो यूँ मृतप्राय पड़े,
चुप्पी तोड़ो, मुंह का खोलो,
हे मौनव्रती कुछ तो बोलो......
युग परिवर्तित करने को
क्रांति की, राह थामनी होती है,
कुछ करने को, करने की
मन में, चाह थामनी होती है,
कल्पना को दो उड़ान,
मन के दरवाजों को खोलो,
हे मौनव्रती कुछ तो बोलो....!
पीड़ा-प्रताड़ना के भय से ,
तुम चुप्पी कब तक साधोगे,
अन्याय व शोषण सहने की
बोलो क्या सीमा बाँधोगे,
अब तो उठ कर विद्रोह करो,
अपनी शक्ति को तोलो,
हे मौनव्रती अब तो बोलो...!
साक्षी हैं इतिहास की जब भी
मौन बनी चिंगारी है,
पापों की चिता है धधक उठी,
हुई नतमस्तक सृष्टि सारी है,
जागो, जग का नेतृत्व करो,
बढ़ व्योम-सितारों को छू लो,
हे मौनव्रती अब तो बोलो....... !
11 comments:
कमाल हो यार तुम जब उर्दू में लिखते हो तो उर्दू शायरी की सारी रवायतें और तहज़ीब याद दिला देते हो और जब हिंदी में लिखते हो तो अलग ही आनंद देते हो. ये हुनर भी सब में नहीं होता.
रवि, रवि, रवि - बहुत खूबसूरत लिखा है।
बोलेंगे पाषाण भी, बोलना ही होगा उन्हें। कवि अपना काम करता रहे, जिसका जो कर्तव्य है उससे च्युत नहीं रहा जा सकता।
अनुज, झूम जाते हैं हम जैसे भी जब अवि और रवि ऐसी कवितायें लिखते हैं।
शुभकामनायें।
एक पत्थर तो तबीयत से उछालो...
yaara...valentines day eve hai...aur tum kargil war ki taiyyari mein lage ho...maajra kya hai
easy buddy...calm down.....hihi
jus kidding....bohot bohot kamaal ki kavita hai...fulltoo adrenaline...makes u wanna get up and think..rather do something.....good job buddy
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (14-2-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.uchcharan.com
एक मौन जब मुखर हुआ तो क्रांति स्वर ऐसे फैले कि दशकों तक शासन करने वाला तानाशाह झुक गया उसके सामने.. इतिहास गवाह है युग युग से परिवर्तन की आँधी तभी आई है जब मौन के स्वर फूटे हैं.. भाई रवि, यह अह्वान एक दिन क्रांति का ऐन्थेम बनेगा!! संजय बाऊ जी सच कह गये हैं.. अवि और रवि जैसे कवि से जुड़कर मैं स्वयम् को धन्य मानता हूँ एण्ड आई मीन इट!!
पीड़ा-प्रताड़ना के भय से ,
तुम चुप्पी कब तक साधोगे,
अन्याय व शोषण सहने की
बोलो क्या सीमा बाँधोगे,
क्या बात कही है ! बहुत प्रेरक प्रस्तुति...बहुत सुन्दर
साक्षी हैं इतिहास की जब भी
मौन बनी चिंगारी है,
पापों की चिता है धधक उठी,
हुई नतमस्तक सृष्टि सारी है,
बहुत प्रेरक, पुरनिया हालिया उदहारण है !
मौनव्रती का मौनव्रत अभी बाकी है.........
देखें कितनी सहनशीलता बाकी है..........कभी तो टूटेगा
बहुत सुन्दर कविता!
हृदय को स्पंदित करने वाली बल्कि ये कहना चाहूंगी कि..... ह्रदय में एक चिंगारी.. क्रांति की जगाने वाली रचना ............शुभकामनाएं
बहुत प्रेरक प्रस्तुति...बहुत सुन्दर
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