Thursday, February 3, 2011

फिर से उसी नाम से पुकार मुझे...

कि भिगो दे ये मोहब्बत का आब'शार मुझे
मेरी जाँ फिर से उसी नाम से पुकार मुझे!

भोर को पैकर-ए-माहताब मे ढलता देखूं
जिस्म का मोम तेरी लौ से पिघलता देखूं

तुझमे में खो कर ही आएगा अब करार मुझे
मेरी जाँ फिर से उसी नाम से पुकार मुझे !

अपने मसले में जमाना नही मुनसिफ़ होगा
अपना अंजाम भी औरों से मुक्तलिफ़ होगा

इन हसीं ख्वाबों का होने दे ऐतबार मुझे
मेरी जान फिर से उसी नाम से पुकार मुझे!

अपना अफ़साना रहती तारीख़ तलक गूंजेगा
ये ज़मीन गाएगी धुन मे, ये फलक गूंजेगा

क्यों डराते हैं और फानी से किरदार तुझे
मेरी जाँ फिर से उसी नाम से पुकार मुझे !

लोग उठाते हैं गर निगाह तो उठाने दे
तू मुझको-ख़ुदको मुहब्बत में डूब जाने दे

पूरा करने दे अब उल्फ़त का शाहकार मुझे
मेरी जाँ फिर से उसी नाम से पुकार मुझे !


ये नज़्म दरअसल एक दूसरी नज़्म को पढते हुए जन्मी थी… तो इसे उस नज़्म की पूरक मान सकते हैं। पहली नज़्म "साँझ " की ब्लॉग पर है…!

21 comments:

शिवा said...

बहुत ही सुन्‍दर प्रस्‍तुति ।

vandana gupta said...

कि भिगो दे ये मोहब्बत का आब'शार मुझे
मेरी जाँ फिर से उसी नाम से पुकार मुझे!

भोर को पैकर-ए-माहताब मे ढलता देखूं
जिस्म का मोम तेरी लौ से पिघलता देखूं

तुझमे में खो कर ही आएगा अब करार मुझे
मेरी जाँ फिर से उसी नाम से पुकार मुझे !

बेहद शानदार गज़ल्…………सीधा दिल मे उतर गयी।

सोमेश सक्सेना said...

बहुत खूब, साँझ जी की नज़्म और आपकी नज़्म दोनो कमाल हैं।

उर्दू का लुत्फ़ ही अलग़ है। धन्यवाद इसे और उसे पढ़ाने के लिए।

Amit Chandra said...

किस किस शेर की तारीफ करू हर शेर लाजबाब है। बेहद सुन्दर गजल आभार।

केवल राम said...

तुझमे में खो कर ही आएगा अब करार मुझे
मेरी जाँ फिर से उसी नाम से पुकार मुझे !


एक शब्द में कहूँ तो ..लाजबाब ..यह पंक्तियाँ जीवन के उन भावों को अभिव्यक्त करती हैं जिन्हें कह पाने में हम सक्षम नहीं होते ...बहुत सुंदर ..आपका शुक्रिया

संजय @ मो सम कौन... said...

नज़्म खूबसूरत है(ये वाली भी), अंत में स्पष्ट न किया होता तो यही कमेंट में लिखता कि इस नज़्म को पढ़कर saanjh की नज़्म बरबस ही याद आ गई। दोनों ही बहुत अच्छी नज़्म हैं।

Kailash Sharma said...

तुझमे में खो कर ही आएगा अब करार मुझे
मेरी जाँ फिर से उसी नाम से पुकार मुझे !

बहुत ही ख़ूबसूरत गज़ल..हरेक शेर दिल को छू जाता है..

Anonymous said...

:)

yup....i like it

Anonymous said...

zara aao.....
apne lafzon se ek saahil bun do.....
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kuch yaad aaya yaara...?
:)

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

दाऊ को नज़्म पढ़ते पढ़्ते सबसे पहले पोती का ख्याल आया, फिर साहिर साहब का.. लेकिन एक बात.. नज़्म की तारीफ से पहले..
लगता है यह नज़्म बहुत जल्दबाज़ी में लिखी गई है, कारण तुम बेहतर जानते होगे.. बहुत सारी ग़लतियाँ हैं.. लेकिन पढ़्ते वक़्त दिमाग़ में एक धुन गूँज रही थीः
फिर न कीजे मेरी गुस्ताख़ निगाही का गिला,
देखिये आपने फिर प्यार से देखा मुझको!
कभी कभी तुम लोगों की नज़्में पढ़ने के बाद अपने मौहिक़ी की नाअह्ली पर कोफ़्त होती है!!

Ravi Shankar said...

@ Shiv kumar ji...

@ Vadana ji...

@ Somesh ji..

@ Ehsaas ji...

@ Keval raam ji...

@ Hukum....

@ Kailash ji...

Bahut bahut dhanyaavaad aap sabka ! Apna sneh banaye rakhiyega !

Ravi Shankar said...

@ Saanjh....

Nahi. kuchh yaad nahi aayaa ! :P

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Kyonki main usko kabhi bhoolta hi nahi :)

Stay blessed !

Ravi Shankar said...

@ Manoj ji...

Bahut shukriya !

@ दाऊ :

बिल्कुल सही हैं आप… नज़्म की कई गलतियाँ तो मैं गिना सकता हूँ। पर दाऊ नज़्म लिखी नहीं गयी सान्झ की नज़्म पढते-पढते बस हो गयी… Extempore Nazm..आशु रचना। और उस पर कमेन्ट करने तक पूरी नज़्म आ गयी थी जेहन में और कुछ पन्क्तियाँ तो वहीं लिख आया था। और फिर इसे बिना तराशे पोस्ट कर दिया…

Ravi Shankar said...

"मौहिक़ी की नाअह्ली""??…… मुझे मतलब समझ नहीं आया दाऊ :(

Er. सत्यम शिवम said...

आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार ०५.०२.२०११ को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.uchcharan.com/
चर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)

संजय @ मो सम कौन... said...

मुझे लगा, भूल गये हो या इग्नोर कर रहे हो, दोबारा से सिम्मेट्रिकल क्रास चैक किया तो देखा - हुकम, हा हा हा।
अनुज, हुकुम नहीं हुकम उदूल हूं:)

Ravi Shankar said...

:) :)

सर जी… ! ये "लगा" बहुत खतरनाक स्थिति है; अच्छे-अच्छों कि वाट "लगा" देती है। ना तो आप भूलने वाली हस्ती हैं और ना आपको इग्नोर करने की अपनी हस्ती है ;) :)[अनुज इतना नालायक नहीं निकल सकता, भरोसा रखिये ;)]

बस वरद-हस्त बनाये रखियेगा। नमन !

rashmi ravija said...

दिल से निकली नज़्म अनगढ़ सी....पर सच्ची होती है...वो तो दिमाग तराशता है उन्हें...
हर शेर मुहब्बत के रंग में डूबा सा लगा..

Ravi Shankar said...

@ Satyam ji...

@ Rashmi ji...

bahut bahut aabhaar aap sabka !

Avinash Chandra said...

कुछ लिखूँ?
जाने दीजिये, आदत बिगड़ जायेगी तारीफ सुन-सुन कर :)

'साहिल' said...

बहुत ही दिलकश नज़्म!

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