Tuesday, April 7, 2009

फातिहा




अभी भी याद हैं तुमको ,
जो तुमने की थी मुझे
ताकीद कभी ,
कि
"तुम्हारे नज्मों में कभी
मैं न रहूँ "
जाने कौन सा डर था तुमको ......

तो आ कर देख लो हमदम ...
मैं उस ताकीद को आज भी
दिल -ओ -जान से मानता हूँ ...
मेरी नज्मों में कहीं भी
तुम नहीं हो .....

मगर ,
वो नज्में ही अब
नज्में कहाँ हैं ...
न उनमे एहसास हैं कोई
न कोई जान बाकी हैं ...
वो बस एक फातिहा सी हैं ..
मैं जिनको पढता रहता हूँ ..
अपने रिश्ते कि मैय्यत पर ...

मैं तेरे बिन
बेमकसद ही स्याही घिस रहा हूँ
मैं आज कल
बस मुर्दा नज्में लिख रहा हूँ .

4 comments:

वाणी गीत said...

bahut khoob ...!

Lams said...

मगर ,
वो नज्में ही अब
नज्में कहाँ हैं ...
न उनमे एहसास हैं कोई
न कोई जान बाकी हैं ...
वो बस एक फातिहा सी हैं ..
मैं जिनको पढता रहता हूँ ..
अपने रिश्ते कि मैय्यत पर
/
hatss off dear..kya baat hai. aaj to meri treat ho gayi :)

--Gaurav

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत पीड़ा भरे एहसास..

दिपाली "आब" said...

outstanding.. Last ke misre padhne se pehle hi mere liye nazm khatm ho gayi thi, mujhe laga ki ab aage kuch nahi hogaa. Fir last ke yeh do misre padhe..
Waah.. Ek naya mod diya, alag sa.. Its one of ur best

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