
बेकल साँसों के घुँघरू है,
तू छेड़ सुरीली तान प्रिये,
आ रोक ले गिरते सूरज को,
दिन होने को अवसान प्रिये,
तेरे पथ में बिछी ये आँखें ,
अब देख बुझी सी जाती है,
जो तेरे पग से गति पाती थी,
वो पवन रुकी सी जाती है,
अब विरह मुझसे न सही जाती,
निकले जाते है प्राण, प्रिये,
बेकल साँसों के घुँघरू है,
तू छेड़ सुरीली तान प्रिये.........
तुम जानो मैं व्याकुल कितना,
मैं जानूं तुम भी बावरी सी,
फिर आज मिलन की बेला में,
है जाने यह देरी कैसी,
जब नयन-हृदय-मन प्राण मिले
फिर कैसा अब व्यवधान प्रिये,
बेकल साँसों के घुँघरू है,
तू छेड़ सुरीली तान प्रिये.......!!
1 comment:
too good :)
har baar yahi kahta hun ise padh ke :)
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