 मेरे  लम्हों  को उम्र  बख्शी  है  ..
मेरे  लम्हों  को उम्र  बख्शी  है  ..
तुम्हारी  याद  तो  खुदा  सी  है ..
तुम्हारा  लम्स  हैं  गुलों  पे  अभी  ,
इनमे  खुशबू  जो  ये  बला  सी  है ..
राज  कुछ  हैं  तेरे  तबस्सुम  में ,
इसके  परदे  में  एक  उदासी  है..
सांस  की  लौ  धुआं  होने  को  है ...
जख्म  ताजा  हैं  , जिस्म  बासी  है
अब  सिमटने  ही  को  हैं  उम्र-ओ-सफ़र ...
बस  कि  दुश्वारी  इक  जरा  सी  है ...
तेरी  सूरत  हैं  मेरा  आब -ए -जमजम  ...
आ , कि  सदियों  से  रूह  प्यासी  है  ...
 
 
 
            
        
          
        
          
        

अभी  भी  याद  हैं  तुमको ,
जो  तुमने  की  थी  मुझे
ताकीद  कभी ,
कि
"तुम्हारे  नज्मों  में  कभी
मैं  न  रहूँ "
जाने  कौन  सा  डर  था  तुमको ......
तो  आ कर  देख  लो  हमदम ...
मैं  उस  ताकीद को आज  भी
दिल -ओ -जान  से  मानता  हूँ ...
मेरी  नज्मों  में  कहीं  भी
तुम नहीं  हो .....
मगर ,
वो  नज्में  ही  अब
नज्में  कहाँ  हैं ...
न  उनमे  एहसास  हैं  कोई
न  कोई  जान  बाकी  हैं ...
वो  बस  एक  फातिहा  सी  हैं ..
मैं  जिनको पढता रहता  हूँ ..
अपने  रिश्ते  कि  मैय्यत  पर ...
मैं  तेरे  बिन
बेमकसद ही  स्याही  घिस  रहा  हूँ
मैं  आज  कल
बस  मुर्दा  नज्में  लिख  रहा  हूँ .
 
 
 
            
        
          
        
          
        

बेकल साँसों के घुँघरू है,
तू छेड़ सुरीली तान प्रिये,
आ रोक ले गिरते सूरज को,
दिन होने को अवसान प्रिये,
तेरे पथ में बिछी ये आँखें ,
अब देख बुझी सी जाती है,
जो तेरे पग से गति पाती थी,
वो पवन रुकी सी जाती है,
अब विरह मुझसे न सही जाती,
निकले जाते है प्राण, प्रिये,
बेकल साँसों के घुँघरू है,
तू छेड़ सुरीली तान प्रिये.........
तुम जानो मैं व्याकुल कितना,
मैं जानूं तुम भी बावरी सी,
फिर आज मिलन की बेला में,
है जाने यह देरी कैसी,
जब नयन-हृदय-मन प्राण मिले
फिर कैसा अब व्यवधान प्रिये,
बेकल साँसों के घुँघरू है,
तू छेड़ सुरीली तान प्रिये.......!!
 
 
 
 संग उस मोड़ तक हम चलेंगे जहाँ,
संग उस मोड़ तक हम चलेंगे जहाँ,
हम सफ़र कोई दूजा मिलेगा नहीं...
चाहनेवाले तुमको मिलेंगे बहुत,
पूजने वाला मुझसा मिलेगा नहीं...
फूल ही यूँ तो होते सगुण प्रेम का,
कांटो का ही सही  तोहफा तो मिले...
कुछ उजाला तो हो प्रेम की राह में,
दीप के   बदले  चाहे  मेरा दिल ही जले...
हैं पसंद मुझको कांटे कहीं फूल से...
खार फूलों सा मुरझा गिरेगा नहीं....
संग उस मोड़ तक हम चलेंगे जहाँ...
हमसफ़र कोई दूजा मिलेगा नहीं.....................
तुम ना चाहो हमें इसका कुछ गम नहीं,
प्रेम साधन नहीं, साधना हैं मेरी...
मन से मिलना ही मन का, प्रिये, प्रेम हैं,
दूर हो कर भी तुम प्रेरणा हो मेरी...
चाहता ही रहूँगा तुम्हे मैं सदा,
कोई प्रतिदान चाहे मिले या नहीं...
संग उस मोड़ तक हम चलेंगे जहाँ ,
हमसफ़र कोई दूजा मिलेगा नहीं...