Thursday, January 12, 2012

आखिरी ख़त....




रक्षा सेवाओं का एक चलन है.... जब सिपाही जंग पर जाता है तो final assault से पहले हर सिपाही अपने प्रिय जनों के नाम एक चिट्ठी लिख छोड़ता है... इसे "लास्ट लैटर " के नाम से जाना जाता है। यदि सिपाही जंग में वीरगति को प्राप्त होता है तो उस चिट्ठी को पोस्ट कर दिया जाता है। मेरे पिता जी एक लम्बे अरसे तक सेना का हिस्सा रहे हैं तो मैंने उस माहौल और मनोदशा को बहुत करीब से समझा है... . एक आखिरी ख़त लिखने की कोशिश की है मैंने भी ... जानाँ के नाम !!

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~


सुनो ...
जरा ठहरो अभी जानाँ ..

कि साँसों में अभी अपनी
जरा तेज़ाब भर लूं मैं ..
जो बिखरे हैं जन्मते ही
वही कुछ ख्वाब भर लूं मैं ...

जब कि मुल्क में सारे ,
लहू से लाल हो आँगन
हर एक रुखसार भीगा हो
बिलखता हो हर इक दामन

तो कैसे , बस तुम्ही सोचो ..
मैं सोचूं अपनी चाहत की
इतनी खुद -गर्ज़ तो नहीं
तासीर अपनी निस्बत की

अभी ठहरो ....
कि साँसों में बहुत
अंगार बाकी है ...
अभी तो ज़िन्दगी से मौत का
व्यापार बाकी है

अभी देखो फिजाँ में
हर जगह पर मौत बिखरी है
तेरी तस्वीर मेरी जाँ,
जेहन में और निखरी है

यहाँ गर जानाँ, मेरी जाँ
वतन के काम आ जाये...
तुम्हारे जिस्म के हिस्से
लिबास मातमी आये

यकीं रखना
इन अश्कों ने
कई गुलशन खिलाएं हैं ...
अकेली तुम जो सिसकी हो
हजारों मुस्कुराएँ हैं

सुनो ,
अब आखिरी तुमसे
मुझे जो बात कहनी है

गर मेरे बिना तुम भी
कहीं पर चैन न पाना
किसी दिन तुम भी मुझ सी ही
वतन के काम आ जाना ...

कि जिस दिन आखिरी,
इस मुल्क से
गद्दार जाएगा
हमारा प्यार उस दिन
खुल के सब में खिलखिलायेगा ...

सुनो ...
जरा ठहरो अभी जानाँ ...

कि साँसों में अभी अपनी
जरा तेज़ाब भर लूं मैं ..!
जो बिखरे हैं जन्मते ही
वही कुछ ख्वाब भर लूं मैं ...

9 comments:

Vandana Singh said...

superb .....jadoo hai poora :)

Puja Upadhyay said...

भाव बेहद खूबसूरत हैं...कुछ देर को चुप करा देने वाले।

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

अनुज! आज तो रुला दिया तुमने.. तुम्हारे दाऊ वैसे ही इमोशनल हैं.. आज तो मुझे यह कहने में भी कोई हिचक नहीं कि यह लंबी नज़्म मुझे कैफी साहब की "होके मजबूर मुझे" के बराबर की लगी! अब कोई इसे मेरे लिए तुम्हारा प्यार कहे या अतिशयोक्ति, मेरे सिंगट्टे से!!

विभूति" said...

मन के भावो को शब्द दे दिए आपने......मार्मिक भावाभिवय्क्ति.....

***Punam*** said...

कि जिस दिन आखिरी,
इस मुल्क से
गद्दार जाएगा
हमारा प्यार उस दिन
खुल के सब में खिलखिलायेगा ...

सुनो ...
जरा ठहरो अभी जानाँ ...

कि साँसों में अभी अपनी
जरा तेज़ाब भर लूं मैं ..!
जो बिखरे हैं जन्मते ही
वही कुछ ख्वाब भर लूं मैं ...

खूबसूरत....

मैं दाऊजी की बात से पूरी तरह सहमत हूँ...
शायद उसके बाद कुछ कहना मतलब नहीं रखता...

Avinash Chandra said...

महाराज! आज नहीं कहूँगा कुछ

संजय भास्‍कर said...

प्रेरणादायी कविता

संजय @ मो सम कौन... said...

सेना से न सही लेकिन सैनिकों से जरूर नजदीक का रिश्ता रहा है और यकीनन कह सकता हूँ कि एक परफ़ैक्ट ’लास्ट लैटर’ ऐसा ही होता होगा। हम सभी ऋणी हैं उन सभी सैनिकों और उनके परिवारों के भी, जिनके त्याग की बदौलत हम आराम की जिंदगी बिताते हैं।
बहुत अच्छी रचना है अनुज, हमेशा की तरह।

Amrita Tanmay said...

बेहद खूबसूरत भाव ..

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...