मोनालिसा
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रात मुसव्विर
आँखें मूँदे सोच रही थी…
रंग कौन सा भरे
ख्वाब के कैनवास पर
तेरी खुशबू के नक्श
उकेरे थे फिर उसने…
"दा-विन्ची" ने भी
क्या जानाँ…,
कभी सोचा था तुमको ?
मोनालिसा फिर तेरी
परछाईं सी क्यों है !
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गुज़ारिश
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गुज़ारिश एक है तुम से ....
मेरी ख़ामोशी ने
जितने तराने छेड़े हैं
तुम पर ...
कभी महसूसना उन को
कभी उन पर थिरक लेना
मुकम्मल साज़ हो लेंगे
मेरे अलफ़ाज़ हो लेंगे
गुजारिश एक है तुमसे ...
मेरी पलकों के कोरों पर
जो आंसू सहमे रहते हैं
हंसी की ओट में हर पल...
कभी तुम भीगना उन में
कभी उन संग सिसक लेना
मेरी तकलीफ के लब पर
तबस्सुम खिलखिलाएगी
मोहब्बत खिलती जायेगी ..
गुजारिश एक है तुमसे ...
12 comments:
बड़ी खूबसूरत गुज़ारिश है!
…बेहद प्रशंसनीय रचना।
मोनालिसा humein adhik pasand aayi..........
अनुज! आज तो तुमने मुझे भी खामोश कर दिया!!
मोनालिसा ने मन मोह लिया और गुजारिश इतनी भी मासूम होती है! मीना कुमारी होतीं तो कह देतीं, "लिल्लाह! ऐसी बातें ना करें जहाँपनाह कि खुदा से यकीन जाता रहे और कनीज़ आपकी इबादत का गुनाह कर बैठे!!"
मोनालिसा ....हिट कर गयी....
मेरी पलकों के कोरों पर
जो आंसू सहमे रहते हैं
हंसी की ओट में हर पल...
कभी तुम भीगना उन में
कभी उन संग सिसक लेना
ye paktiya bahut achchhi lagi
वाह....दोनों बेहतरीन...बहुत खूबसूरत!!!
रात मुसव्विर
आँखें मूँदे सोच रही थी…
just loved this line! what a b'ful thought!!
मोनालीसा ज़्यादा खूबसूरत लगी :)
doosri nazm bahut pyaari hai, monalisa kuch kacchi lagi..actually shuru bahut acche se hui.. Pr end tak aate aate yun laga bhatak rahi thi aur zabardasti anjaam tak lai gai.. Seems like aur kuch kehte kehte reh gaya.. Ya kahin aur jaani thi aur kahin aur laai gai
bahut hi sundar nazm hain !
आपके पोस्ट पर आना सार्थक हुआ । बहुत ही अच्छी प्रस्तुति । मेर नए पोस्ट "उपेंद्र नाथ अश्क" पर आपकी सादर उपस्थिति प्रार्थनीय है । धन्वाद ।
क्या खूब!
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