मैं जब भी टूट कर बिखरा ,
मुकद्दर देख कर सिहरा ,
मुझे ढाढस बंधाने को ..
ग़मों में भी हंसाने को ..
तुम्हारा नाम आया था ...
खिजाँ की बदलियाँ छायीं ,
उजाले जब थे परछाईं ,
दिया बन जगमगाने को...
मुझे रस्ता दिखाने को ...
तुम्हारा नाम आया था ...
दिखी तकदीर की वहशत,
छिनी जब हर मेरी नेमत ,
दुआ में मुझको लाने को ...
ख़ुदा बन कर बचाने को ...
तुम्हारा नाम आया था .....
मगर उस वक़्त-ए-आख़िर जब
उखरती जाती थीं साँसें ,
बुझी जाती थीं ये आँखें ,
मेरी धड़कन बढ़ाने को ...
हमें जिंदा दिखाने को ...
तुम्हारा नाम न आया ....
हमने कर ली जो थी ठानी,
वो पहली बार मनमानी ,
मेरे सजदा-ए-आख़िर पर...
मेरे होठों की जुम्बिश पर ...
मुझे रुखसत कराने को ,
हमें मिट्टी दिलाने को ,
तुम्हारा नाम आया था ...
तुम्हारा नाम आया था ...!
12 comments:
मैं जब भी टूट कर बिखरा ,
मुकद्दर देख कर सिहरा ,
मुझे ढाढस बंधाने को ..
ग़मों में भी हंसाने को ..
तुम्हारा नाम आया था ...
bahut sundar bhaw
har ek pankti bhut hi sunder.. aur dil ko chu lene vali hai... very nice...
no words for this yaara.....none....
ur amazing...
मैं जब भी टूट कर बिखरा ,
मुकद्दर देख कर सिहरा ,
how sweeet....ja tu khush reh...god bless u
बहुत सुन्दर भावाव्यक्ति।
सुन्दर भाव सुन्दर पंक्तियाँ.
वाह... बहुत खूब... अच्छी रचना है!
bahut khoob likha hai bhai.
dil ki kalam se likhte likhte dil ko chhoo liya.
"बस तेरा नाम ही मुकम्मल है".. इस पर कुछ कहना भी क्या होगा!! बस अनुज!!
दाऊ होकर चले गये हैं, इसलिये लिंक देने में कोई डर नहीं है अब:)
http://www.youtube.com/watch?v=4WG35D6l7cU
अनुज, जो मिला उसे सहेज लें तो भी बहुत है।
मुझे रुखसत कराने को ,
हमें मिट्टी दिलाने को ,
तुम्हारा नाम आया था ...
तुम्हारा नाम आया था ...!
bahut acchi lagin ye panktiyan..
जीवन की आपाधापी में आप सब का स्नेह मुझे संबल प्रदान करता है… ! आप सबको नमन !
नेमत तो दिख ही रहा है .यूँ ही दिल से लिखकर दिल तक उतर आये आप.शुभकामना
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