नयनन छवि, पी की बसे मोरे रामा ...
धरम कहे, मति हरि संग जोडूँ
सदगति, सतफल पाऊं ....
करम कहे बस जगतहीं उलझूं ..
व्यर्थ न मन भरमाऊं ..
मन जोगी सुध कोई न ले जोई
पी परे कोई न कामा ssss...
नयनन छवि, पी की बसे मोरे रामा ...!
दिन बीते पथ इक टुक तकते
निशि बीते सपनाहीं ......
काल -पहर सब बीतत जैहें ...
पीऊ पर आवत नाही ....
हरि विनती मुख कौन करूँ जिस
मुख पीऊ आठों यामाssss ....
नयनन छवि, पी की बसे मोरे रामा !!
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
आस्था -अनास्था ,सफलता और संघर्ष के निरंतर द्वन्द से गुजरते हुए बस एक ही संबल होता है मेरा .... यह गीत उसी दिव्य और पवित्र विश्वास को समर्पित है.
धरम कहे, मति हरि संग जोडूँ
सदगति, सतफल पाऊं ....
करम कहे बस जगतहीं उलझूं ..
व्यर्थ न मन भरमाऊं ..
मन जोगी सुध कोई न ले जोई
पी परे कोई न कामा ssss...
नयनन छवि, पी की बसे मोरे रामा ...!
दिन बीते पथ इक टुक तकते
निशि बीते सपनाहीं ......
काल -पहर सब बीतत जैहें ...
पीऊ पर आवत नाही ....
हरि विनती मुख कौन करूँ जिस
मुख पीऊ आठों यामाssss ....
नयनन छवि, पी की बसे मोरे रामा !!
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आस्था -अनास्था ,सफलता और संघर्ष के निरंतर द्वन्द से गुजरते हुए बस एक ही संबल होता है मेरा .... यह गीत उसी दिव्य और पवित्र विश्वास को समर्पित है.
18 comments:
अनुज!! कमाल की कनेक्टिविटी है... बस एक घोर समाधि, एक आत्यंतिक आनंद!!
बहुत प्यारी रचना है रवि जी ...
दिन बीते पथ इक टुक तकते
निशि बीते सपनाहीं ......
काल -पहर सब बीतत जैहें ...
पीऊ पर आवत नाही ....
dard bhari pukaar...
vo zaroor sunega...!!
कुछ लिख पाने के लिए शब्द ढूंढ रही हूँ काफी देर से....मिल ही नहीं रहे!!
अंतस में उतरता ... सीधे मन में प्रभाव करता ... सुन्दर रचना ..
♥
दिन बीते पथ इक टुक तकते
निशि बीते सपनाहीं ......
काल -पहर सब बीतत जैहें ...
पीऊ पर आवत नाही ....
वाह ! अति उतम !
आदरणीय रविशंकर जी
सस्नेहाभिवादन !
लगा जैसे आपका गीत नहीं , कबीर रैदास की वाणी पढ़ रहा हूं …
बहुत सुंदर !
~*~नवरात्रि और नव संवत्सर की बधाइयां शुभकामनाएं !~*~
शुभकामनाओं-मंगलकामनाओं सहित…
- राजेन्द्र स्वर्णकार
संबल है तो द्वन्द्व की कोई चिंता नहीं, एकदम सात्विक भाव।
हर संघर्ष के लिये शुभकामनायें, अनुज।
खूबसूरत!!!!!!!!!!!!!!!
खुशबु की जुबां तो बोलनी ही पड़ेगी....
मद-मस्त.............
अनु
खूबसूरत!!!!!!!!!!!!!!
खुशबू की जुबाँ में बोलना ही पड़ेगा..........
मद-मस्त.....
अनु
खूबसूरत!!!!!!!!!!!!!!
खुशबू की जुबाँ में बोलना ही पड़ेगा..........
मद-मस्त.....
अनु
एक शब्द... आमीन!
रोम-रोम में प्रार्थना भाव उमग रहा है..
.
क्या बात है बंधुवर !
नई रचना को बहुत समय हो गया …
आशा है आप सपरिवार स्वस्थ-सानन्द हैं …
शुभकामनाओं सहित…
राजेन्द्र स्वर्णकार
rijh bhaje ke khijh ......
behatarin bol aur behatarin GAYAN
BADHAI
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन ब्लॉग बुलेटिन: कोई दूर से आवाज़ दे चले आओ मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
इन्ही हालात से गुजरते हैं सब मुरलीधर श्याम मिलते हैं तब्………… सुन्दर भाव
आनंद देती रचना
सुंदरतम
ब्लॉग बुलेटिन से यहाँ पहुँचना अच्छा लगा :)
समय निकाल कर अपने पाठकों भी तृप्त करें...
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