वह विजय में है मेरी और हार में भी
शीर्ष पे और मध्य में, आधार में भी
मनसा-वाचा-कर्मणा में वो समाहित
वह पृथन में भी मेरे, अभिसार में भी
आरोहण-अवसान इष्टा को समर्पित
मेरा हर इक गान इष्टा को समर्पित...
जेठ में है, पूस में है, फाग में वो
विधि रचित हर कण में है, हर भाग में वो
वृक्ष की हर पात के कलरव में गुंजित
विहग के झुण्डों के हर इक राग में वो
रात्रि-रज़ हर बूँद उसके आचमन में
हर नया विहान इष्टा को समर्पित
मेरा हर इक गान इष्टा को समर्पित...
मैं भ्रमित हूँ,मुझ में या परिवेश में है
मैं हूँ उसके या वो मेरे वेश में है
मन की हर संवेदना है जनित उससे
वो मेरे अनुराग में है , द्वेष में है
अश्रु और मुस्कान इष्टा को समर्पित
मेरा हर इक गान इष्टा को समर्पित...
एक तेरी मोहब्बत ने बनाया हैं खुदा मुझको,मैं रोज खल्क करता हूँ नया संसार ग़ज़ल में..
Sunday, September 25, 2011
Thursday, September 8, 2011
कहो क्या नाम दूँ तुमको !
कहो क्या नाम दूँ तुमको !
सहर में तुम,शफक़ में तुम
परिंदों की चहक में तुम,
परस्तिस में, इबादत में
सलीके में, नफ़ासत में
लिखावट में, ज़बानी में
मेरी हर इक कहानी में....
तसव्वुर बस तुम्हारा है ।
मेरी साँसें, मेरी धड़कन
ये मेरी रूह का पैराहन
तेरे सदके मेरी जाना
ये इंतेज़ाम सारा है...
मेरी शोहरत, मेरी चाहत
मेरी रुसवाइयां तुम से
मेरी नफ़रत, मेरी तोहमत
मेरी अच्छाईयाँ तुम से
मैं क्या ईनाम दूँ तुमको !
मैं क्या इल्ज़ाम दूँ तुमको !
कहो क्या नाम दूँ तुमको ?
==============================================================
तुम्हारी याद भर से नज़्म…
रक्स करती है काग़ज पर…
तसव्वुर से तुम्हारे,
शेर सब परवाज़ भरते हैं…
तेरे आगोश में सिमटूँ
तो मैं गुलज़ार हो जाऊँ…!
सहर में तुम,शफक़ में तुम
परिंदों की चहक में तुम,
परस्तिस में, इबादत में
सलीके में, नफ़ासत में
लिखावट में, ज़बानी में
मेरी हर इक कहानी में....
तसव्वुर बस तुम्हारा है ।
मेरी साँसें, मेरी धड़कन
ये मेरी रूह का पैराहन
तेरे सदके मेरी जाना
ये इंतेज़ाम सारा है...
मेरी शोहरत, मेरी चाहत
मेरी रुसवाइयां तुम से
मेरी नफ़रत, मेरी तोहमत
मेरी अच्छाईयाँ तुम से
मैं क्या ईनाम दूँ तुमको !
मैं क्या इल्ज़ाम दूँ तुमको !
कहो क्या नाम दूँ तुमको ?
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तुम्हारी याद भर से नज़्म…
रक्स करती है काग़ज पर…
तसव्वुर से तुम्हारे,
शेर सब परवाज़ भरते हैं…
तेरे आगोश में सिमटूँ
तो मैं गुलज़ार हो जाऊँ…!
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