Friday, December 16, 2011

जानाँ के नाम… (नन्ही नज़्में)

मोनालिसा
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रात मुसव्विर
आँखें मूँदे सोच रही थी…
रंग कौन सा भरे
ख्वाब के कैनवास पर

तेरी खुशबू के नक्श
उकेरे थे फिर उसने…

"दा-विन्ची" ने भी
क्या जानाँ…,
कभी सोचा था तुमको ?
मोनालिसा फिर तेरी
परछाईं सी क्यों है !

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गुज़ारिश
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गुज़ारिश एक है तुम से ....

मेरी ख़ामोशी ने
जितने तराने छेड़े हैं
तुम पर ...
कभी महसूसना उन को
कभी उन पर थिरक लेना

मुकम्मल साज़ हो लेंगे
मेरे अलफ़ाज़ हो लेंगे
गुजारिश एक है तुमसे ...

मेरी पलकों के कोरों पर
जो आंसू सहमे रहते हैं
हंसी की ओट में हर पल...
कभी तुम भीगना उन में
कभी उन संग सिसक लेना

मेरी तकलीफ के लब पर
तबस्सुम खिलखिलाएगी
मोहब्बत खिलती जायेगी ..
गुजारिश एक है तुमसे ...

Tuesday, December 6, 2011

आज कल बे-ईमान बहुत हो गये हो तुम...

आज कल बे-ईमान
बहुत हो गये हो तुम.

वजूद अपना जो छोड़ा था
तुम्हारी निगहबानी में...
उसका कतरा भी कोई
अब नही मिलता मुझको
वो सब तुमने छुपा
कर रख लिया है
और इंतेहाँ ये
कि इक इल्ज़ाम
बेवफ़ाई का
मेरे सर कर दिया है

करार-ए-ज़िंदगी
के वो कुछ सफ़हे
जिन्हे चश्मदीद रखा था
ये सब कुछ सौंपते तुमको
तुम्हारे हक़ में
गवाही देने लगे हैं

मुक़दमा ख़ास है ना ये
अदालत ये तुम्हारी है ,
मुद्दई तुम, तुम्हीं मुन्सिफ
वकालत भी तुम्हारी है.

लो मैं कबूलता हूँ
जुर्म अपना...!
सुनो, अब फ़ैसले में
देर मत करो जानाँ ...
अपने आगोश में
उम्र-क़ैद की सज़ा दे दो!
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