कर गई आज दिल-ओ-जाँ को मेरे तर बारिश ,
हुई थी ख्वाब की तेरे जो रात भर बारिश ..
वो रात भर मेरे कानों में घोलती मिसरी
ले के आई थी मुझ तक तेरी खबर बारिश ...
यूँ ही एक दुसरे में घुलते रहे हम दोनों ...
फकत बूँदें थीं वो, या तेरी नजर , बारिश ...
नजर में घुल के मेरी रूह तक उतर जाना
सीख के आई है तुझसे ही ये हुनर बारिश ...
दिल की डाली को उम्र भर ये हरा रखेगी ...
जो तेरे दीद की हुई है, मुक्तसर बारिश ...
*शफक का वक़्त है, रवि के साथ है पूनम*
मोहब्बत बरस रही है, तू ठहर बारिश !
*शफ़क -- गोधुलि बेला की लालिमा… जब सूरज और चाँद दोनों ही दिख जाते हैं !
एक तेरी मोहब्बत ने बनाया हैं खुदा मुझको,मैं रोज खल्क करता हूँ नया संसार ग़ज़ल में..
Tuesday, April 26, 2011
Tuesday, April 12, 2011
आवारा नींदें ..
कितनी रातों से
आवारा घूमती हैं
मेरी नींदें ..
यूँ तो हर रोज़
तुम्हारी याद की ईंटें
अपने एहसास की जमीन पर
बिछाता हूँ ....
तेरे रुखसार के नक़्शे
की शिकन पा कर
मुद्दतों
आशियाँ बनाता हूँ ..
फकत इक ख्वाब की जुम्बिश
तेरी जुदाई की जानाँ ...
ये सब कुछ तोड़ जाती है
और मेरी नींद को
हर शब्
खुले छत छोड़ जाती है ...
न कोई मरमरी घर दो
तुम अपने साथ का जानाँ
तो इक अंगीठी तबस्सुम की
जला दो जेहन में मेरे
हरारत जिसकी ले के मैं
हर इक शब् जागता बैठूँ
इस बंजारे को अब तो कोई
छत मयस्सर हो ..
कितनी रातों से
आवारा घूमती हैं
मेरी नींदें ..!
आवारा घूमती हैं
मेरी नींदें ..
यूँ तो हर रोज़
तुम्हारी याद की ईंटें
अपने एहसास की जमीन पर
बिछाता हूँ ....
तेरे रुखसार के नक़्शे
की शिकन पा कर
मुद्दतों
आशियाँ बनाता हूँ ..
फकत इक ख्वाब की जुम्बिश
तेरी जुदाई की जानाँ ...
ये सब कुछ तोड़ जाती है
और मेरी नींद को
हर शब्
खुले छत छोड़ जाती है ...
न कोई मरमरी घर दो
तुम अपने साथ का जानाँ
तो इक अंगीठी तबस्सुम की
जला दो जेहन में मेरे
हरारत जिसकी ले के मैं
हर इक शब् जागता बैठूँ
इस बंजारे को अब तो कोई
छत मयस्सर हो ..
कितनी रातों से
आवारा घूमती हैं
मेरी नींदें ..!
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