कैसे कह दूं
कि उसी शख्स से
नफरत है मुझे !
वही जो शख्स
मेरे ख्वाब तोड़ देता है,
वही उन ख्वाबों के
होने का पर सबब भी है...
मेरी हयात के
पुर्जे बिखेरने वाला,
मेरी साँसों को सजाने का
वो ही ढब भी है...
मैं चाहता नहीं पर
जिसकी जरूरत है मुझे !
कैसे कह दूं
कि उसी शख्स से
नफरत है मुझे !
मेरी शिकस्त में है
और सफ़र के हौसलों में भी...
ख़ुशी में जीत की
पैरों के आबलों में भी...
वही ज़मीन है
पैरों के नीचे,
छत भी है.... ,
वही मिटाने की
जुम्बिश-ओ-हरारत भी है...
मगर तन्हाई में भी
उसकी ही आदत है मुझे
कैसे कह दूं
कि उसी शख्स से
नफरत है मुझे !
20 comments:
अनुज!! डूब गया इस नज़्म में... वैसे तो मुझे कॉम्पेयर करना नहीं पसंद लेकिन आज तुमने याद दिला दी साहिर साहब की नज़्म "प्यार पर बस तो नहीं है मिरा लेकिन फिर भी"...
जीते रहो!!
मगर तन्हाई में
उसकी ही आदत है मुझे
कैसे कह दूं
कि उसी शख्स से
नफरत है मुझे !
.....बहुत सुन्दर भावमयी प्रस्तुति...
सुन्दर रचना .. आपकी कविता ने मन तार को झंकृत कर दिया .... आपको बसंती ऋतू के आगमन पर शुभकामनायें..
उम्र भर नफरत के साथ भी कभी कभी जरूरत बन जाता है कोई ... वैसे कभी कभी उम्र भर पता भी नहीं चलता की नफरत है या कुछ और ...
तुम्ही से मुहब्बत तुम्ही से लड़ाई !
सुन्दर अभिव्यक्ति!
बेहतरीन प्रस्तुति
कल 01/02/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है, कैसे कह दूं उसी शख़्स से नफ़रत है मुझे !
धन्यवाद!
मेरी शिकस्त में है
और सफ़र के हौसलों में भी...
ख़ुशी में जीत की
पैरों के आबलों में भी...
जिससे जितना प्यार , उसीसे उतना ही नफरत , प्यार का अनोखा रिश्ता.... !!!!
बहुत बहुत बहुत सुन्दर.....
शायद शब्दों में अभिव्यक्त कर सकूँ ..
बेहतरीन रचना..
कैसे कह दूं
कि उसी शख्स से
नफरत है मुझे !
वही जो शख्स
मेरे ख्वाब तोड़ देता है,
वही उन ख्वाबों के
होने का पर सबब भी है...
मेरी हयात के
पुर्जे बिखेरने वाला,
मेरी साँसों को सजाने का
वो ही ढब भी है... !
सही कहा आपने...
हम जैसे लोग नफरत कर ही नहीं सकते....!!
bahut sundar rachna
खुबसूरत नज़्म...
//मगर तन्हाई में भी
उसकी ही आदत है मुझे
कैसे कह दूं
कि उसी शख्स से
नफरत है मुझे !
dil ke aar paar nikal gai sir ekdum..
bemisaal..
kabhi samay mile to mere blog par bhi aaiyega.. ummed karta hun aapko pasand aaiyega..
palchhin-aditya.blogspot.com
@ Daau ..
aap baal-vigyan ki tulna Rocket science se na kiya karen, Daau ! hum lajawaab ho jate hain :)
naman !
@ Kailash ji...
bahut shukriya shriman !
मगर तन्हाई में भी
उसकी ही आदत है मुझे ............ कितनी ही बार ऐसा होता है .....
याद आता है तो क्यों उससे गिला होता है .
वो जो एक शख्स हमें भूल चुका होता है
एक बेहतरीन प्रस्तुति के लिए बधाई रवि जी !
नहीं कह सकते कुछ लोगों से...
नहीं कह सकते...
क्या कहूँ ..? बस ..कुछ नहीं...
वाह, बहुत खूबसूरत! आपको और भी पढ़ना पड़ेगा..
शब्द कि इस मर्म को .... मैं यूँ समझ कर आ गया …
अल्फाज पढ़ के यूँ लगा .... खुद से ही मिल के आ गया ....
बहुत खूब ....
बहुत सालों से ऐसा नहीं पढ़ा। ।
वाह उस्ताद वाह
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