मेरे हमसफ़र तू बिछड़ गया !
मगर फिर भी क्यों तेरी आहटें
मेरे जेहन-ओ-दिल में खनक रहीं ...
तेरे जिस्म में थीं जो खुशबुएँ
मेरे बाम-ओ-दर पे महक रहीं ...
क्यों तेरे ख़याल का अंजुमन
है फलक का नूर बना हुआ
वो तबस्सुमों का हिजाब है
मेरे सोच-ओ-सच पे तना हुआ
मेरी ज़िन्दगी का हर एक गुल
क्यों है तेरे नाम खिला हुआ ...
मेरी सांस का हर तार क्यों
तेरी धडकनों से मिला हुआ ...
मेरे हमसफ़र जो हुआ है ये
कि तू दिख रहा है ख़फ़ा-ख़फ़ा
गर सच है ये तो मुझे बता
कि तू कब है मुझसे जुदा हुआ ...
मेरे हमसफ़र तू बिछड़ गया ...
मगर मुझसे कब है जुदा हुआ .
16 comments:
क्यों तेरे ख़याल का अंजुमन
है फलक का नूर बना हुआ
वो तबस्सुमों का हिजाब है
मेरे सोच-ओ-सच पे तना हुआ
बहुत खूब ...
bahut accha likha hai aapne ...best wishes ....
वाह बहुत सुन्दर भाव उकेरे हैं।
अनुज! कहाँ गायब हो जाते हो!! और लौटते हो तो फिर वही शाम, वही गम, वही तन्हाई लेकर.. रचना के विषय में तो कुछ भी कहना कम होगा!! बी पोजिटिव!!
बहुत ही खुबसूरत शब्द रचना.....
मेरे हमसफ़र तू बिछड़ गया ...
मगर मुझसे कब है जुदा हुआ .
और हमारा दिल भी टुकड़े-टुकड़े हो गया....!!
सुन्दर भाव....
बेहतरीन..............
क्यों तेरे ख़याल का अंजुमन
है फलक का नूर बना हुआ
वो तबस्सुमों का हिजाब है
मेरे सोच-ओ-सच पे तना हुआ
waah
किसी के ख्वाबो का अंजुमन दिल में उतरा रहता है हमेशा ... उम्दा रचना है ...
अच्छी प्रस्तुति
रवि जी, आप बहुत ही खूबसूरत लिखते हैं...मैं अक्सर आपके ब्लॉग पर आती रहती हूँ...ऐसे रंग बिखरे होते हैं कि तारीफ को शब्द घट जाते हैं।
हर भाव के लिए एक और केवल एक शब्द होता है, बहुत कम लोग उस एक शब्द को पकड़ पाते हैं...आपको पढ़ कर मुझे ऐसा ही लगता है कि जैसा भाव उभरा उसके लिए एकदम बस यही शब्द हो सकता था।
कवितायें छंद पर भी कसी हुईं और भाव में भी सराबोर...जब आती हूँ चकित रह जाती हूँ। कुछ तो है बेहद खूबसूरत जो आपको पढ़ने के बाद अनुगूँज की तरह वापस आता है, बहुत बहुत देर बाद।
आपके कोमेंट भी सीधे दिल से निकले होते हैं...अच्छा लगता है। शुक्रिया।
बहुत खूब! अच्छी लगी ये नज़्म!
फैज़ अहमद 'फैज़' की शैली की झलक मिल रही है!
.. hmmm..nice :)
जब हमसफ़र कहा ही है तो वो जुदा कहाँ है .. बस आप आगे की तारीफ़ को समझ जाएँ .
बहुत ही सटीक भाव..बहुत सुन्दर प्रस्तुति
शुक्रिया ..इतना उम्दा लिखने के लिए !!
Bahut khoob...wahhhh!!!
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