कितनी रातों से
आवारा घूमती हैं
मेरी नींदें ..
यूँ तो हर रोज़
तुम्हारी याद की ईंटें
अपने एहसास की जमीन पर
बिछाता हूँ ....
तेरे रुखसार के नक़्शे
की शिकन पा कर
मुद्दतों
आशियाँ बनाता हूँ ..
फकत इक ख्वाब की जुम्बिश
तेरी जुदाई की जानाँ ...
ये सब कुछ तोड़ जाती है
और मेरी नींद को
हर शब्
खुले छत छोड़ जाती है ...
न कोई मरमरी घर दो
तुम अपने साथ का जानाँ
तो इक अंगीठी तबस्सुम की
जला दो जेहन में मेरे
हरारत जिसकी ले के मैं
हर इक शब् जागता बैठूँ
इस बंजारे को अब तो कोई
छत मयस्सर हो ..
कितनी रातों से
आवारा घूमती हैं
मेरी नींदें ..!
13 comments:
कितनी रातों से
आवारा घूमती हैं
मेरी नींदें
......WAAH......
"फकत इक ख्वाब की जुम्बिश
तेरी जुदाई की जानाँ ...
ये सब कुछ तोड़ जाती है
और मेरी नींद को
हर शब्
खुले छत छोड़ जाती है .."
ख्वाब को फ़कत बताते हो अनुज, मेरी तरह तुम भी झूठे हो। तमाम रातें, तमाम नींदें लुटाकर भी ये एक ख्वाब पल जाये तो सस्ता है।
truly brilliant..
keep writing...........all the best
Beautiful as always.
It is pleasure reading your poems.
दुर्गाष्टमी और रामनवमी की हार्दिक शुभकामनाएं।
माँ दुर्गा आपकी सभी मंगल कामनाएं पूर्ण करें
Narmdili se ubhara hai reshami khyalon ko...aavara gumti neend..behtreen najuk khyali ...shukriya
अनुज!
इन आवारा नींदों को प्यार दो,बड़ी आसानी से बहल-फुसल जाती हैं ये नींदें और दे जाती हैं सुनहरी ख्वाब आँखों को!!
एक बहुत ही नाज़ुक नज़्म जो वाह की आवाज़ से भी ख्वाब की तरह टूट जाए! आहिस्ता से फुसफुसा कर कहता हूँ.. बहुत खूब.. ख्याल रहे.. जाग जाएगा कोई ख्वाब तो मर जाएगा!
बहुत खूबसूरत नज़्म ...
दिल मे उतरती चली गयी।
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (14-4-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
Behad sundar... aur tareef karna m "चला बिहारी ब्लॉगर बनने" se seekhungi.. bt truelly brilliant :)
बहुत खूबसूरत नज़्म| धन्यवाद|
हरारत जिसकी ले के मैं
हर इक शब् जागता बैठूँ
इस बंजारे को अब तो कोई
छत मयस्सर हो ..
bahut hi badhiya
"नींदें"
आवारा ही होती हैं.....
जब चाहो तो नहीं आती
और बिन बुलाये ही आ जाती हैं!
जिसको चाहो उसे आने नहीं देती हैं
और अनचाहे को मेहमां बना बैठती हैं..!!
जहाँ चाहो वहां नहीं जाने देतीं...
और...
अनजानी जगह पहुंचा देती हैं..!!
सच में....
"नींदें आवारा" ही होती हैं....!!"
फकत इक ख्वाब की जुम्बिश
तेरी जुदाई की जानाँ ...
ये सब कुछ तोड़ जाती है
और मेरी नींद को
हर शब्
खुले छत छोड़ जाती है ...
न कोई मरमरी घर दो
तुम अपने साथ का जानाँ
तो इक अंगीठी तबस्सुम की
जला दो जेहन में मेरे
ये आवारा नींदें, बेहद ख़ूबसूरत बातें कहती हैं, माँगती हैं, चाहती हैं।
वाह कह लूँ, मुस्कुरा लूँ, एक बार और पढ़ लूँ, चुपचाप!! :)
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