
मेरे लम्हों को उम्र बख्शी है ..
तुम्हारी याद तो खुदा सी है ..
तुम्हारा लम्स हैं गुलों पे अभी ,
इनमे खुशबू जो ये बला सी है ..
राज कुछ हैं तेरे तबस्सुम में ,
इसके परदे में एक उदासी है..
सांस की लौ धुआं होने को है ...
जख्म ताजा हैं , जिस्म बासी है
अब सिमटने ही को हैं उम्र-ओ-सफ़र ...
बस कि दुश्वारी इक जरा सी है ...
तेरी सूरत हैं मेरा आब -ए -जमजम ...
आ , कि सदियों से रूह प्यासी है ...