कैसे कह दूं
कि उसी शख्स से
नफरत है मुझे !
वही जो शख्स
मेरे ख्वाब तोड़ देता है,
वही उन ख्वाबों के
होने का पर सबब भी है...
मेरी हयात के
पुर्जे बिखेरने वाला,
मेरी साँसों को सजाने का
वो ही ढब भी है...
मैं चाहता नहीं पर
जिसकी जरूरत है मुझे !
कैसे कह दूं
कि उसी शख्स से
नफरत है मुझे !
मेरी शिकस्त में है
और सफ़र के हौसलों में भी...
ख़ुशी में जीत की
पैरों के आबलों में भी...
वही ज़मीन है
पैरों के नीचे,
छत भी है.... ,
वही मिटाने की
जुम्बिश-ओ-हरारत भी है...
मगर तन्हाई में भी
उसकी ही आदत है मुझे
कैसे कह दूं
कि उसी शख्स से
नफरत है मुझे !
एक तेरी मोहब्बत ने बनाया हैं खुदा मुझको,मैं रोज खल्क करता हूँ नया संसार ग़ज़ल में..
Friday, January 27, 2012
Thursday, January 12, 2012
आखिरी ख़त....
रक्षा सेवाओं का एक चलन है.... जब सिपाही जंग पर जाता है तो final assault से पहले हर सिपाही अपने प्रिय जनों के नाम एक चिट्ठी लिख छोड़ता है... इसे "लास्ट लैटर " के नाम से जाना जाता है। यदि सिपाही जंग में वीरगति को प्राप्त होता है तो उस चिट्ठी को पोस्ट कर दिया जाता है। मेरे पिता जी एक लम्बे अरसे तक सेना का हिस्सा रहे हैं तो मैंने उस माहौल और मनोदशा को बहुत करीब से समझा है... . एक आखिरी ख़त लिखने की कोशिश की है मैंने भी ... जानाँ के नाम !!
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सुनो ...
जरा ठहरो अभी जानाँ ..
कि साँसों में अभी अपनी
जरा तेज़ाब भर लूं मैं ..
जो बिखरे हैं जन्मते ही
वही कुछ ख्वाब भर लूं मैं ...
जब कि मुल्क में सारे ,
लहू से लाल हो आँगन
हर एक रुखसार भीगा हो
बिलखता हो हर इक दामन
तो कैसे , बस तुम्ही सोचो ..
मैं सोचूं अपनी चाहत की
इतनी खुद -गर्ज़ तो नहीं
तासीर अपनी निस्बत की
अभी ठहरो ....
कि साँसों में बहुत
अंगार बाकी है ...
अभी तो ज़िन्दगी से मौत का
व्यापार बाकी है
अभी देखो फिजाँ में
हर जगह पर मौत बिखरी है
तेरी तस्वीर मेरी जाँ,
जेहन में और निखरी है
यहाँ गर जानाँ, मेरी जाँ
वतन के काम आ जाये...
तुम्हारे जिस्म के हिस्से
लिबास मातमी आये
यकीं रखना
इन अश्कों ने
कई गुलशन खिलाएं हैं ...
अकेली तुम जो सिसकी हो
हजारों मुस्कुराएँ हैं
सुनो ,
अब आखिरी तुमसे
मुझे जो बात कहनी है
गर मेरे बिना तुम भी
कहीं पर चैन न पाना
किसी दिन तुम भी मुझ सी ही
वतन के काम आ जाना ...
कि जिस दिन आखिरी,
इस मुल्क से
गद्दार जाएगा
हमारा प्यार उस दिन
खुल के सब में खिलखिलायेगा ...
सुनो ...
जरा ठहरो अभी जानाँ ...
कि साँसों में अभी अपनी
जरा तेज़ाब भर लूं मैं ..!
जो बिखरे हैं जन्मते ही
वही कुछ ख्वाब भर लूं मैं ...
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