Tuesday, October 19, 2010

दिल के देश में अब के बरस सूखा पड़ा है न ...!



यूँ तो हर साल आती थी ,
तुम्हारे याद की तितली ..
मेरे जेहन की मिटटी का
परागन करने ...

तेरे तसव्वुर के बीजों को
बिखरा जाती थी
हर बार
और मेरा गुलशन
खिल उठता था
हरा भरा हो कर

वो अबकी आई है
फिर से बीज लिए ..
मगर मुश्किल में है
कहाँ बैठे ..
जेहन की मिट्टी तो
सारी बंजर है ..

दिल के देश में
अब के बरस
सूखा पड़ा है न ...!

19 comments:

Anonymous said...

awwwwww........tooooo good. bohot sweet hai dost, lovely

Avinash Chandra said...

change of guards sir ji!!!!!!!!!

Dusron ko bhi batting karne dijiye...

par sach me dhaakad cover drive hai :)

monali said...

Lovely poem... upma ka sundar prayog.. aasha h k banjar me fir fool khilein.. titli kuchh to aas bandhati hi h..

Dr Xitija Singh said...

bahut khoobsurat nazm ... ravi ji .... kitne hi saawan baras gaye par ye sookha hai ki ...

दिपाली "आब" said...

awwwwwww..... Mast nazm kahi hai yaaraaa... Ek dam mast typo

vandana gupta said...

मगर मुश्किल में है
कहाँ बैठे ..
जेहन की मिट्टी तो
सारी बंजर है ..

दिल के देश में
अब के बरस
सूखा पड़ा है न ...!

अब इसके बाद कहने को कुछ बचता कहाँ है?
एक बेहतरीन रचना।

कृषि समाधान said...

क्या बात है बहुत ही सुन्दर...
दिल के देश में
अब के बरस
सूखा पड़ा है न ...

क्या बात है....वाह...

शुभकामनायें
चन्दर मेहेर
lifemazedar.blogspot.com
kvkrewa.blogspot.com

Udan Tashtari said...

बहुत उम्दा!

Patali-The-Village said...

बहुत ही सुन्दर ......

gyaneshwaari singh said...

kya baat hai dil ke desh em sukha pada hai

Dr.Aditya Kumar said...

excellent

वाणी गीत said...

दिल के देश में अबके बरस सूखा पड़ा है ना ...
अद्वितीय ...!

ZEAL said...

.

ज्यादातर लोगों के दिलों का देश सुखा ही पाया है आज तक। जहाँ स्वार्थ की वृष्टि होती है, दिल सूखे ही रह जाते हैं....

[ नोट - generalize किया है मैंने। ]

वैसे आपका दिल तो मोम सदृश लगता है। यथार्थ पे लिखी एक सुन्दर रचना।

.

Anonymous said...

अति सुंदर - उच्च स्तरीय रचना के लिए हार्दिक बधाई

Avinash Chandra said...

aisa nahi hai

Ravi Shankar said...

बहुत बहुत आभार आप सभी का, मित्रों ! आपने अपनी तमाम व्यस्तताओं के बीच समय निकाला और मेरी रचना को स्नेह दिया !

कलम धन्यवाद करती है!

संजय भास्‍कर said...

बेह‍तर रचना। अच्‍छे शब्‍द संयोजन के साथ सशक्‍त अभिव्‍यक्ति।

संजय भास्‍कर said...

"माफ़ी"--बहुत दिनों से आपकी पोस्ट न पढ पाने के लिए ...

Unknown said...

शानदार प्रयास बधाई और शुभकामनाएँ।

-लेखक (डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश') : समाज एवं प्रशासन में व्याप्त नाइंसाफी, भेदभाव, शोषण, भ्रष्टाचार, अत्याचार और गैर-बराबरी आदि के विरुद्ध 1993 में स्थापित एवं 1994 से राष्ट्रीय स्तर पर दिल्ली से पंजीबद्ध राष्ट्रीय संगठन-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान- (बास) के मुख्य संस्थापक एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। जिसमें 05 अक्टूबर, 2010 तक, 4542 रजिस्टर्ड आजीवन कार्यकर्ता राजस्थान के सभी जिलों एवं दिल्ली सहित देश के 17 राज्यों में सेवारत हैं। फोन नं. 0141-2222225 (सायं 7 से 8 बजे), मो. नं. 098285-02666.
E-mail : dplmeena@gmail.com
E-mail : plseeim4u@gmail.com

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